माँ का पल्लू
मेरा छोटा भाई हमेशा मेरी माँ का पल्लू थामे रहता .माँ जहाँ भी जाती वह पल्लू पकड़े साथ साथ चलता . कभी कभी तो माँ को जब बाथरूम जाना होता तो और मुश्किल में पड़ जाती. कभी माँ खीज कर कहती – छोड़ो पल्लू बेटा ! इतना अपशकुन क्यों करते हो ? अगर मैं मर गयी तो क्या करोगे ?
अबोध बालक तो कुछ नहीं समझ पाया कि मृत्यु क्या होती हैं लेकिन होनी ने माँ की बात सुन ली . कुछ ही दिनों में मेरी माँ की मृत्यु हो गयी . माँ को जब ज़मीन पर लिटाया गया तो वह भी उसके पास लेट गया और अपनी मुट्ठी में माँ का पल्लू कस लिया . बड़े बुजुर्गों ने कहा, "बच्चे को रहने दो कुछ देर’’.
अर्थी उठने का जब समय आया तो किसी ने मेरे भाई को वहाँ से उठाने की कोशिश की, मगर सब कोशिश बेकार. वह टस से मस नहीं हुआ . न जाने कहाँ से उसके शरीर में इतनी शक्ति आ गयी थी जबकि उसकी आयु मुश्किल से चार साल की होगी . उसकी मुट्ठी में माँ का पल्लू कसा हुआ था . उस पल्लू को छुड़ाने में जब सभी लोग नाकाम रहे तब पंडित जी ने एक उपाय सुझाया कि पल्लू को कैंची से काट दिया जाय . माँ का अंतिम संस्कार तो हो गया लेकिन अपने छोटे भाई को संभालने में मुझे दिन में भी तारे दिखने लगे थे . मैं भी छोटी थी लेकिन समय ने मुझे असमय ही परिपक्व बना दिया था .
वक्त अगर घाव देता है तो मरहम का जुगाड़ भी कर देता है . आज वह शादी शुदा है . उसने माँ के श्रृंगार दान में आज भी उस पल्लू को सम्भाल कर रखा है. मैं जब भी मायके जाती हूँ उस पल्लू को खामोश नज़रों से देखती हूँ जिसमें एक बचपन कैद है . मेरी आँखों से दो श्रद्धा के सुमन झर जाते है .
( आप बीती – डायरी के पन्नों से. मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीया मित्र कुंती जी,
आपने इस हृदय-विदारक पन्ने को हमारे संग साझा किया, आपका धन्यवाद।
यह केवल आपकी diary का पन्ना नहीं है, यह आपके जीवन का मार्मिक पन्ना है।
आपने इतना अच्छा लिखा है कि माँ के पल्लू का विन्यस्त दृश्य पढ़ते-पढ़ते
मेरी आँखों में समा गया है।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
आदरणीया कुंती जी
अपनी डायरी के पन्नों में से एक अबसे अजीज आपबीती को आपने साँझा किया..माँ और बच्चे के इस अटूट भाव बंधन पर हृदय नम है...नत है ..सादर.
आदरणीया आपकी रचना पढ़कर आँखें नम हो गईं, माँ से बिछड़ने की पीड़ा पुनः ह्रदय में आ गया मन को व्याकुल कर गया. कुछ और नहीं कह सकूँगा. सादर
माँ के पल्लू का वह टुकड़ा अनमोल हो गया, माँ की स्मृति जो बसी बसी है, पढ़ते पढ़ते जैसे ही आँख के कोर भीगने लगे,
आपकी डायरी के अंश की प्रस्तुति का अंतिम चरण आ गया और लगा जैसे कोई कहानी अधूरी रहगयी | भाव-विव्हल करने
वाली सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
आदरणीया कुंती जी, बहुत मार्मिक यह दृश्य, आज पढने में भी आँखे नम कर रहा है उस लोकसे भी माता का आशीष आप भाई बहनों पर सदा बना रहे. सादर.
प्रस्तुति समाप्त हो गयी है. क्या कहूँ ! निजी पन्नों से साझा हुई इस प्रस्तुति पर कुछ न कह पाऊँगा, आदरणीया कुन्ती जी. किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ.
सादर
आ0 कुन्ती जी, अतिसुन्दर .अश्रुपूरित नयन से मां को श्रध्दांजलि.. हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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