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!!! गजल !!!
वज्न-2122, 2122, 2122, 212


तुम जो आये जिन्दगी में, बात सादर हो गयी।
जिन्दगी की सारी सरिता, आज सागर हो गयी।।


आपसी मत भेद भूले, कामना सच हैं नये।
बात रातों की करे तो, चांदनी कर हो गयी।।


हुस्न के जल्वे दिखे है, शाम शबनम की खुशी।
हम सफर जो साथ रहता, आंख कातर हो गयी।।


बन्दगी अब बन्दगी है, रंग - रंगत एक से।
आज फिर राधा-किशन है, बात सुन्दर हो गयी।।


आपकी ही बांसुरी में, गोपियों की लालसा।
राम का दर्शन कराती, मुक्ति सुखकर हो गयी।।


हम नहीं तो क्या सही है, क्या गलत है रास्ता।
आप से ही पूंछता हूं, हाल कमतर हो गयी।।


नफरतों की सोच ‘सत्यम‘,आग को अब रोक दो।
हर कदम अब छांव देखो, धूप बदतर हो गयी।।


के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 9:28pm

आ0 रक्ताले सर जी,   आपके स्नेह और आशीष से सदा ही मेरा मान बढ़ता है।  आपका तहेदिल से हार्दिक अभार।  सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 8:50pm

वाह! आदरणीय केवल प्रसाद जी सुन्दर गजल. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 14, 2013 at 9:59pm

आ0 विजय निकोर जी, आपके स्नेह हेतु तहेदिल से हार्दिक आभार, सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 14, 2013 at 9:58pm

आ0 राजेश कुमारी मैम जी, आपके स्नेह हेतु तहेदिल से हार्दिक आभार, सादर,

Comment by vijay nikore on May 14, 2013 at 6:16pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी:

 

सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 14, 2013 at 9:39am

बहुत सुन्दर सधी हुई ग़ज़ल देखकर   केवल प्रसाद जी आपसे अपेक्षा और बढ़ गई है फिलहाल इस ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 14, 2013 at 8:44am

आ0 वीनस भाई जी,  सादर प्रणाम!  गजल पर आपके स्नेह, आशीष और टिप्पणी ने मेरे मन  को अत्यधिक आश्वस्त किया है।  जी! मैं अभी भी पूर्णता संतुष्ट नहीं था किन्तु इतनी बधाईयां पाकर भी मुझे संतोष नही हुआ। जी,   अब आपके आशीष वचन से मैं कृत्य-कृत्य हुआ।  जी भाई जी,  कोई भी साधना अनवरत, अनन्त और अबाध्य गति से चलती रहती है। मैं सदैव ही इस बात को जहन में संभाल कर रखूंगा।  आपके स्नेह दृष्टि और देववचन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by वीनस केसरी on May 14, 2013 at 1:05am

केवल प्रसाद जी
ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें
शिल्प को साध कर खुद को एक पायदान ऊपर पहुँचा हुआ पाना निश्चित ही सुखद अनुभूति है
इसके लिए भी आपको बधाई
कहन को साधना और सुधारना निरंतर  होने वाला कार्य है जो पूरी ज़िंदगी चलता रहता है ....

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2013 at 9:12pm

आ0 राम शिरोमणि जी,    प्रिय मित्र,  आपको ओ0बी0ओ0 पर अवकाश के बाद पुनः देखकर बड़ा हर्ष हुआ।     गजल की सराहना एवं अपार स्नेह के लिए आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2013 at 9:08pm

आ0 रोशनी धीर जी,     गजल की सराहना एवं स्नेह के लिए आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

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