For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाँद बादल में छुपा [नज़्म]

चाँद बादल में छुपा,  परछाइयाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

चुप्पियों की बाढ़ आयी , सारे मेले बह गये ।
महफ़िलों की गोद में भी , हम अकेले रह गये ।

खामोश मेरे हाल पर , खामोशियाँ भी हो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

अब तो कोई दर्द कोई गम भी बाकी ना रहा ।
मेरी इस आवारगी का , कोई साथी ना रहा ।

चैन तो ना मिल सका बेचैनियाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।

आँखों में जो छायी रहीं, रंगीनियाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर, तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

नीरज

Views: 1414

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Nishchal on May 24, 2013 at 3:15pm

आभार आरणीय अशोक जी 

Comment by Neeraj Nishchal on May 24, 2013 at 3:14pm

आभार शशि जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:12am

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।..........वाह बहुत खूब 

सुन्दर नज्म सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी.

Comment by shashi purwar on May 22, 2013 at 1:20pm

waah bahut khoob

Comment by Neeraj Nishchal on May 21, 2013 at 12:44pm
राजेश कुमारी जी बहुत बहुत आभार
Comment by Neeraj Nishchal on May 21, 2013 at 12:43pm
बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 21, 2013 at 11:58am

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।----वाह दिल को छू गई पंक्तियाँ ,आदरणीय सौरभ जी की बात पर गौर फरमाएं आपका ये हुनर और चमक उठेगा शुभाशीष 

Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2013 at 9:51am

इस सुंदर नज्म के लिए आपको बधाई! नज्म क्या होती है इस पर आपसे मार्गदर्शन चाहूंगा।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 21, 2013 at 7:39am

आ0 नीरज भाई जी, सुप्रभात! अतिसुन्दर, वाजिब भाव ही है। ’चुप्पियों की बाढ़ आयी, सारे मेले बह गये ।
महफ़िलों की गोद में भी, हम अकेले रह गये।’ भाई जी! सौरभ सर जी के कहे का सदा ध्यान रखें आपका भविष्य उज्जवल हो। इसी शुभकानाओं के साथ हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Neeraj Nishchal on May 21, 2013 at 1:12am

Thanks And Gratitude Shalini ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

ajay sharma shared a profile on Facebook
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service