वाह! तरही मुशायरा के इस अंक में क्या ही शानदार, एक से बढ़कर एक गजलें पढने को मिली...आनंद आ गया... सभी गजलकारों को तहेदिल से मुबारकबाद देते हुए मुशायरा के दौरान व्यस्तता की वजह से पोस्ट नहीं हो सकी 'मिसरा ए तरह' पर गजल प्रयास सादर प्रस्तुत...
क्या पता अच्छा या बुरा लाया।
चैन दे, तिश्नगी उठा लाया।
जो कहो धोखा तो यही कह लो,
अश्क अजानिब के मैं चुरा लाया।
क्यूँ फिजायें धुआँ धुआँ सी हैं,
याँ शरर कौन है छुपा लाया।
बाग में या के हों बियाबाँ में,
गुल हों महफूज ये दुआ लाया।
लूटा वादा उजालों का करके,
ये बता रोशनी कुजा लाया?
मेरा साया मुझी से कहता है,
अक्स ये कैसा बदनुमा लाया।
लो सलाम आखिरी कजा लायी,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।
हो मेहरबाँ 'हबीब' उसुर मुझपे,
इम्तहाँ रोज ही जुदा लाया।
___ मौलिक एवं अप्रकाशित____
सस्वर प्रयास-
सादर
संजय मिश्रा 'हबीब'
Comment
आपका प्रयास अत्यंत व्यवस्थित था, संजय भाई.
काश यह ग़ज़ल आयोजन की माला का एक अमूल्य मनका होती.
आपकी आवाज़ में इसे सुनने का लुत्फ़ और भी बढ़ गया.
ढेर सारी दाद लें. और यों ही अभिसिप्त करते रहें.
शुभ-शुभ
आपकी आवाज में गजल सुनकर गजल समारोह सा लुफ्त उठाया, सुन्दर गजल और आवाज के लिए हार्दिक बधाई
बहुत बढ़िया संजय जी
बधाई सस्वर पेश करने के लिए
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हुई है आदरणीय भाई जी ///हार्दिक बधाई
वाह अभी सुना भी -
क्या पता अच्छा या बुरा लाया।
चैन दे, तिश्नगी उठा लाया।
क्या खूब अंदाज़ है जनाब वाह !!
बाग में या के हों बियाबाँ में,
गुल हों महफूज ये दुआ लाया।
वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है हबीब जी शानदार शेर हुए है हार्दिक बधाई !!
आदरणीय संजय जी:
// क्यूँ फिजायें धुआँ धुआँ सी हैं,
याँ शरर कौन है छुपा लाया। // ....
वाह, वाह, वाह ! क्या ख़्याल है! बधाई।
सादर,
विजय निकोर
bahut khoob !!
आ0 संजय हबीब जी, ’ क्यूँ फिजायें धुआँ धुआँ सी हैं, याँ शरर कौन है छुपा लाया।’ बहुत ही सुन्दर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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