प्रेम के विशाल बटवृक्ष
जिसमें भावनाओं की गहरी
जड़ें और यकीन की
मजबूत साखें
उसमें झूमता है
इठलाता है
सब्ज़ दिल
रिवाजों और रस्मों की
तेज आँधियाँ भी
बेअसर होती हैं इस
विशाल वृक्ष के आगे
जब यकीन के मजबूत तने में
तना होता है दिल
लेकिन
शक की दीमकों ने
आहत कर दीं
वो भावनाओं की जड़ें
धीरे धीरे
खोखला कर दिया
आज इस बटवृक्ष को
और मजबूरियाँ ठगने का
साधन जिसकी बाढ़
वृक्ष के अगल बगल से
हटाती रिश्तों की माटी को
और कामयाब हो भी जाती है
क्यूंकी रिश्ते बोने होते हैं
गहरी भावनाओं और
यकीन के आगे
रिश्ते झूठे हैं
बह जाते हैं बाढ़ में
और टूट पड़ता है दिल
इस वृक्ष की खोखली
हो चुकी यकीन की
साखों से
तड़पता हुआ
वेदना से भरा
किंतु शून्य नहीं
अपने शनैः शनैः क्षीण होने को
आँकता है
स्वयं को टटोलता है
किंतु
फिर जुड़ता नहीं
उस खोखले हुए
वृक्ष से जो
अब गिर चुका है
स्वयं की नज़रों से
भावनाओं को आहत कर और
यकीन तोड़ के
प्रेम अब नहीं रहा
तो फिर दुख भी नहीं
जब रिश्ता ही नही
तो दुख कैसा
लेकिन दिल ठगता है
खुद को
करता है ढोंग
उसके तिल तिल पीले पड़ने तक
फिर सड़ने तक
छी थू है
ऐसे प्रेम पर
जो दीमकों को न्योता देती हैं
कुछ तो सीखो विज्ञान से कोई
एंटीदीमक कोई विष
कुछ तो इस्तेमाल करना था
काश दिल के पास भी
दिमाग़ होता
बेचारा
प्रेम के भरोशे मारा गया
संदीप पटेल "दीप"
Comment
सुन्दर रचना.
एक अच्छी रचना होते-होते रह गयी. इतना ही कहूँगा. वैचारिक संप्रेषणों में थोड़ीभी वाचालता प्रभाव मेट देती है.
प्रारम्भ के दो बंद अत्यंत समृद्ध हैं. ऊहापोह को साझा करते हुए, कि, भावनाओं का सैलाब अनियंत्रित शब्दों में ढलने लगता है.
आपका प्रयासरत रहना आशस्त करता है, आदरणीय.
शुभ-शुभ
आदरणीय केवल प्रसाद जी, आदरणीय राम भाई, आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, आदरणीय विजय सर जी , आदरणीया कुंती जी आदरणीया डॉ प्राची जी आप सभी का रचना कर्म को सरहाने हेतु हृदय से आभारी हूँ स्नेह यूँ ही बनाए रखिए सादर
आ0 संदीप भाई जी, वृक्ष से जो
अब गिर चुका है
स्वयं की नज़रों से
भावनाओं को आहत कर और
यकीन तोड़ के
प्रेम अब नहीं रहा
तो फिर दुख भी नहीं
जब रिश्ता ही नही
तो दुख कैसा.... अतिसुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
गहन और उदात्त भाव हैं आपकी इस रचना में। साधुवाद!
सादर,
विजय निकोर
शक की दीमक प्रेम से हरे भरे रिश्तों को कैसे खोखला कर जाती हैं और छोड़ जाती है एक तड़प...
काश दिल के पास भी
दिमाग़ होता
बेचारा ..................सुन्दर शब्द !
अभिव्यक्ति पर हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हुई है आदरणीय भाई जी ///हार्दिक बधाई
संदीप जी , बहुत ही सुंदर और मुखर अभिव्यक्ति की है .अगर देखा जाए तो हर दिल का यहीं हाल है .........काश दिल के पास भी
दिमाग़ होता
बेचारा
प्रेम के भरोशे मारा गया..........अति सुंदर / सादर / कुंती .
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