बारिशो के
Comment
आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी,
आगे कमियों को दूर करने का प्रयास करुँगी | आप का ह्रदय से आभार
आदरणीय Jitendra Pastariya जी,
आप की सरहना ओर शुभकामनाओं के लिए आप का ह्रदय से आभार
आदरणीय संदीप जी,
आदरणीया इस रचना को इस तरह लिखने में क्या परेशानी थी?
बारिशो के मौसम में
मन जब चाहे
किसी के साथ
दूर तक ठहल आने को
मेरा ख्याल तो नहीं आता न
तुम को !
किसी अंजान शहर में
घूमते हुए नजरें जब
किसी अजनबी चेहरे में
तलाशने लगे
किसी खास शख्स को
मेरा ख्याल तो नहीं आता न
तुम को !
इस अंतिम बंद में कलम बहक सी गयी लगती है। कथ्य स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। इसे एक बार फिर से देखकर संयमित कर लें।
या फिर
निपट अकेलेपन में
चाह हो किसी कंधे की
किसी स्पर्श की
दिल खोल के रखने को
जी चाहे जब
मैं जानती हूँ
फिर भी जाने क्यूँ
होता है ये यकीं
तुम्हारे ख्यालो में
मैं भी कहीं तो
महकती होंगी न....
अतुकांत को जितने सधे ढंग से आप लिखने का प्रयास करेंगी रचना की सुंदरता उतनी ही बढ़ेगी, भाव उतने ही स्पष्ट होंगे।
नामचीन कवियों की रचनायें पढ़ें। आदरणीय सौरभ जी के अतुकांत जो यहां ओबीओ पर ही पोस्ट हैं उन्हें देखें। आपको रास्ता मिलेगा।
आपने उम्मीद है इसलिए साहस कर इतना कह दिया। आशा है आप इसे अन्यथा न लेंगी और मेरे इस दुस्साहस को क्षमा करेंगी।
आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई।
सादर!
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
अति सुंदर
रचना में भावनाएँ अच्छी लगीं। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत खूब आदरेया-
सीधे साधे प्रश्न से, टहलाते मनमीत |
प्रेम प्रेम सदप्रेम ये, पग पग जाए जीत ||
आपके रचनाकर्म में संभावनाएँ हैं, दिव्याजी. शुभेच्छाएँ .
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