रिश्ता....
ख्वाब नहीं है
ये मेरा ख्याल नहीं है
ये तेरा सवाल नहीं है
रिश्ता .....
किसी के लिए चाँद है
किसी के लिए ख्वाब है
तो किसी के लिए कसक है
किसी के लिए महक है
रिश्ता ....
बहता पानी है
मानो तो अमृत है
न मानो तो बहता पानी है
रिश्ता ....
रेत है
जितना पकड़ो
सरकता जाता है
रिश्ता तो रिसता है
रिश्ता .....
खून का हो
या हो तेरा, या हो मेरा
रिश्ता तो रिसता है ....
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सच ही तो ऐसे रिश्तो को औपचारिक के धागे से बांध के रखने की क्या जरुरत जो, कठिन समय में साथ देने के बजाये दूर चले जाये अपने व्यवसाय को तरक्की देने के लिए :((((((
रिश्ते अगर जबरदस्ती रखे जाये तो तार तार हो कर बिखरते है ,, बेहतर है की झूठ की गिरह खोल दी जाये
आपकी रचना ने मर्म पर चोट की और रचना बांचते समय अपना प्रभाव रखा
बहुत अच्छी काव्य रचना के लिए बधाई स्वीकारे!
रिश्ता .....
किसी के लिए चाँद है
किसी के लिए ख्वाब है
तो किसी के लिए कसक है
किसी के लिए महक है
रिश्ता ....
बहता पानी है
मानो तो अमृत है
न मानो तो बहता पानी है.....रिश्ते का क्या अनोखा बयाँ है.
बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना....................
आदरणीय..अमोद जी,
आपने रिश्तो के जो मायने बताये है "
हम भी रिश्तो से ही दामन को सजाए है ||
बहुत सुन्दर रचना.. बधाई
बहुत सुन्दर रचना.. बधाई
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