For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बंजर व्योम तो हम पर तना है !

अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,

उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है !

मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !

चित्र है उत्कीर्ण कोई चित्त पर ,
ठहर जाती जहां जाकर कल्पना है !

सूर्य की ये रश्मियाँ बंधक बनीं हैं 
एक अंधी कोठरी मे ठहरना है !

रास्ते अब स्वयं ही थकने लगे हैं 
पूछता गंतव्य मन क्यों अनमना है ?

_______________________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल 

 (मौलिक और अप्रकाशित )


Views: 695

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:41pm

डा. प्राची सिंह जी ,हार्दिक आभार आपकी सराहना का ,मेरा विनम्र निवेदन है कि इसे हिन्दी की विशिष्ट पहचान के रूप मे 'गीतिका' ही कहें हम ,हम उर्दू के नियमों की दुरूहता से अलग गीतिका (जो गज़ल जैसी है ,कुछ लोग इसे हिन्दी गज़ल भी कहते हैं ) एक पूर्ण स्वतंत्र शैली है जिसका प्रयोग बहुत दिनों से हो रहा है (आदरणीय कवि नीरज जी ने इसी शब्द का गज़ल की जगह प्रयोग किया है  ),मेरी विवशता है कि मै गज़ल शब्द का प्रयोग इसके लिए नही करता हूँ ,सादर सादर,सस्नेह ______वि.शु.

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:34pm

आपका ह्रदय से आभार मित्र विजय मिश्र जी !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:33pm

मेरे स्नेही मित्र सौरभ पाण्डेय जी ,आपकी टिप्पणी के लिए बहुत आभार ,सराहना के शब्द भी मधुर ,धन्यवाद ,मेरा एक निवेदन है इस सम्बन्ध मे -मेरी यह काव्य-विधा जो 'गीतिका'  शीषक से है -नवगीत नही है(गीत तो प्रत्येक गेयऔर  छंद-बद्ध रचना होती है ) ,यह हिन्दी की विशिष्ट और स्वतंत्र शैली है जो उर्दू की गज़ल के बहुत निकट है ,इसकी अपनी पहचान है ,यह पुरानी हिन्दी 'हरिगीतिका (छंद)" भी नही है ,मै उर्दू की गज़ल नही हिन्दी मे गीतिका ही लिखता हूँ पिछले कई दशक से / उर्दू की औपचारिक बंदिशों  से अलग हिन्दी की अपनी इस गीतिका शैली को गज़ल जैसी कहा जा सकता है / कुछ लोग हिन्दी गज़ल शब्द का प्रयोग कर रहे हैं ,मै गज़ल शब्द का प्रयोग नही करता हूँ ,आदरणीय कविवर नीरज ने गज़ल के बजाय 'गीतिका' शब्द का प्रयोग किया है और इसी शीर्षक से रचनाएं लिखी हैं ,सबसे पहले उन्होंने ही इसे गीतिका कहा ,स्व.दुष्यंत कुमार ने अपनी रचनाओं मे हिन्दी की सहज ,सरल गज़ल को प्रस्तुत किया और उर्दू गज़ल की दुरूहता से इसे स्वतंत्र पहचान दी,मेरा विनम्र प्रयास है कि हिन्दी की इस विशिष्ट विधा को इसके ही रूप मे जाना जाए .यह कतई आवश्यक नही कि उर्दू के जानकार इसे गज़ल माने ,इसका यही स्वरुप जिसमे सहजता ,गेयता ,भाव-सम्प्रेषणीयता और प्रवाह है हमारी हिन्दी की गीतिका है ,सादर ______वि.शु. 

Comment by विजय मिश्र on July 2, 2013 at 10:30am
बिन्दू में सिंधु है , शब्द-शब्द अपने भार का बोध करा देता है और ठहराव का आग्रह करता है . कितना सुंदर अभिव्यंजित हुआ है भाव ! आनंद !!!

"चित्र है उत्कीर्ण कोई चित्त पर ,
ठहर जाती जहां जाकर कल्पना है !" -- अमाबट सा जमावट लिए हुए है . इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए साधुवाद विश्वम्भरजी .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 2, 2013 at 8:04am

आ० प्रो० विशम्भर शुक्ल जी, 

आपकी बहुत सारी ब्लॉग रचनाएँ पड़ीं..सब बहुत ही संवेदनशील भावदशा को अभिव्यक्त करती हैं, 'गीतिका' शीर्षक के तहत लिखी सब ही रचनाएँ गज़ल के काफी करीब है.. यदि गज़ल का ही आवरण दें तो अभिव्यक्ति बहुगुणित हो निखर उठेगी.

सादर शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 6:04am

बहुत् अच्छी भाव-दशा के लिए बधाई, आदरणीय.

एक बात समझ में नहीं आयी कि आपने इस भाव-दशा को ग़ज़ल की शैली में क्यों बाँधा जबकि बह्र का निर्वहन नहीं करना था. नवगीत या गीत या कविता मेरी समझ से अधिक उचित माध्यम होतीं. 

मतला को जिस लिहाज में संयत किया गया है वह पहले शेर के सानी के साथ ही बदल गया है. आगे के अश’आर में तो पूरी बह्र ही बदल गयी है.

हिन्दी भाषा की ग़ज़लों को लेकर बहुत कुछ कहा जाता रहा है. हम जैसे लोग सुनते-पढते रहते हैं. आपकी इतनी अच्छी कोशिश ऐसे लोगों को ही संतुष्ट कर रही है कि वे गलत नहीं हैं. मैं धृष्टता कर रहा होऊँ तो क्षमा कीजियेगा.

सादर

Comment by वीनस केसरी on July 2, 2013 at 1:58am

अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,

उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है !

वाह वा प्रो साहब बहुत सुन्दर भाव हैं ...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2013 at 7:12pm
आदरणीय..विश्वम्भर शुक्ल जी, सुंदर पंक्तियों के लिए, शुभकामनाऐ
Comment by ram shiromani pathak on July 1, 2013 at 7:02pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर  क्या कहने //हार्दिक बधाई आपको

Comment by aman kumar on July 1, 2013 at 3:31pm

अति सुंदर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अच्छी रचना हुई है ब्रजेश भाई। बधाई। अन्य सभी की तरह मुझे भी “आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा”…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश नूर भाई। बहुत बधाई "
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आभार रक्षितासिंह जी    "
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"अच्छे दोहे हुए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी। एक ही भाव को आपने इतने रूप में प्रकट किया है जो दोहे में…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, दोहों पर उपस्थिति, और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
20 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
21 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है …"
21 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, एक सार्वभौमिक और मार्मिक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service