For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको

बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको

खुदाया जब भी दे रिज्के हलाल दे मुझको

नहीं मैं राई को पर्वत, न तिल को ताड़ कहूं

ज़ुबान  साफ़ औ' सादा  ख़याल दे  मुझको .

तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी

तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको

जुनूने इश्क़ कहीं कुफ्र तक न पहुँचा दे

तू अपने गोशाये दिल से निकाल दे मुझको

मुझे भी पी के बहकना कभी गंवारा नहीं

मगर जो गिरने पे आऊँ, संभाल दे मुझको

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on July 4, 2013 at 11:25pm

तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी

तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको

जुनूने इश्क़ कहीं कुफ्र तक न पहुँचा दे

तू अपने गोशाये दिल से निकाल दे मुझको

मुझे भी पी के बहकना कभी गंवारा नहीं

मगर जो गिरने पे आऊँ, संभाल दे मुझको... वाह वाह बहुत ही शानदार गजल ...बधाई

Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 10:05pm

बहुत सुन्दर! ढेरों बधाई स्वीकार करें।

Comment by Neeraj Nishchal on July 4, 2013 at 3:09pm

अप्रतीम आदरणीय सुशील जी ..........
आदरणीय सौरभ जी ने सराही आपकी कविता ...
तो अब तो कुछ कहने को बचा ही नही .....


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 4, 2013 at 12:17pm

वांछित सुधर कर दिया गया है आदरणीय.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 11:34am

आदरणीय सुशील भाई, आपकी कोई पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. ह्रदय से बधाइयाँ इस ग़ज़ल पर. इन अश्आर पर तो मैं विशेष दाद कह रहा हूँ.

तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी

तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको

जुनूने इश्क़ कहीं कुफ्र तक न पहुँचा दे

तू अपने गोशाये दिल से निकाल दे मुझको

मुझे भी पी के बहकना कभी गंवारा नहीं

मगर जो गिरने पे आऊँ, संभाल दे मुझको

वाह वाह .. .

शुभम्

Comment by बसंत नेमा on July 4, 2013 at 11:05am

आ0  श्री सुशील जी बहुत खुबसूरत गजल  बधाई  

Comment by Sushil Thakur on July 4, 2013 at 12:49am

आदरणीय  योगराज साब , मुझसे टाइप   भूल हुई.   शेर है
ज़ुबान  साफ़ औ'  सदा  ख़याल दे  मुझको .
मैं क्षमा प्रार्थी हूँ . तथा इस्लाह  के लिए बहुत शुक्रिया .

Comment by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 11:41pm

वाह वा जनाब,
आला दर्जे की ग़ज़ल कही है  
ढेरो दाद पेश करता हूँ

तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी

तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको .... जिंदाबाद भई क्या रवां दवां शेर है ...



एक छोटा सा ब्लंडर काफ़िया को ले कर हो गया है उस पर ध्यान दीजिए...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 3, 2013 at 8:50pm

सुंदर गज़ल कही गई,बधाई.  आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की सलाह पर गौर फरमाइयेगा.गज़ल और भी हसीन हो जायेगी.

Comment by रविकर on July 3, 2013 at 8:17pm

आमीन
बधाईयाँ आदरणीय -

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service