For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनसुलझे प्रश्न // डॉ० प्राची

प्रकृति पुरुष सा सत्य चिरंतन 

कर अंतर विस्तृत प्रक्षेपण 

अटल काल पर

पदचिन्हों की थाप छोड़ता 

बिम्ब युक्ति का स्वप्न सुहाना...

अन्तः की प्राचीरों को खंडित कर

देता दस्तक.... उर-द्वार खड़ा 

मृगमारीची सम

अनजाना - जाना पहचाना... 

खामोशी से, मन ही मन

अनसुलझे प्रश्नों प्रतिप्रश्नों को 

फिर, उत्तर-उत्तर सुलझाता...

वो,

अलमस्त मदन 

अस्पृष्ट वदन 

गुनगुन गाये ऐसी सरगम 

हर सुप्त स्वप्न को दे थिरकन

क्षणभंगुर जग का हर बंधन ,

फिर भी,    क्यों ऐसे देवदूत से 

बंधन ये अन्अंत पुराना सा लगता है ?

क्यों एक अजनबी जाना पहचाना लगता है?

मौलिक एवं अप्रकाशित 

डॉ० प्राची 

Views: 1198

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 4, 2013 at 5:03pm

प्रिय नीरज मिश्रा जी 

//अब इतनी सुन्दर कविता की तारीफ भी कैसे वर्णन हो .....
दीपक से रवि की आभा का कहिये किस भाँति प्रदर्शन हो ....//

रचना को इतनी खूबसूरत काव्य पंक्तियों द्वारा मान देने के लिए बहुत बहुत आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 4, 2013 at 4:55pm

आदरणीय शरदिंदु जी 

सादर नमस्कार !

रचना का कथ्य प्रवाह आपके अन्तः पाठक को संतृप्त कर सका , तो रचना लेखन सार्थक ही हुआ समझ रही हूँ .

//इस रचना की गूंज मानस के अंजाने प्रकोष्ठ में भी झंकृत होती रहेगी लम्बे समय तक आदरणीया प्राची जी. आनंद की इस नयी अनुभूति से साक्षात्कार  कराने के लिये पाठक आपके ऋणी रहेंगे.//

इन विशेष शब्द भावों  के लिए एक रचनाकार भी स्वयं को आप सम पाठकों का ऋणी ही अनुभव करेगा आदरणीय 

सादर.

Comment by रविकर on July 4, 2013 at 4:55pm

सुन्दर प्रस्तुति -
आभार आदरेया -


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 4, 2013 at 4:51pm

आ० शिज्जू जी 

रचना पर आपके अनुमोदन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ .

आदरणीय प्रयुक्त शब्द थाप ही है क्योंकि यहाँ किसी पटल पर दृश्य छाप की बात नहीं वरन अनंत काल में सदा के लिए गूंजते भाव नाद की बात है. उम्मीद है मैं स्पष्ट कर पायी 

सादर.

Comment by ram shiromani pathak on July 4, 2013 at 4:47pm

वो,

अलमस्त मदन 

अस्पृष्ट वदन 

गुनगुन गाये ऐसी सरगम 

हर सुप्त स्वप्न को दे थिरकन///वाह अद्भुत शब्द संयोजन ///

मंत्र मुग्ध हो गया मै///आदरणीया प्राची जी प्रणाम सहित हार्दिक बधाई आपको ///


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 4, 2013 at 4:46pm

आदरणीय राजेश झा जी 

प्रस्तुत रचना की तथ्यात्मकता की सर्वग्राह्यता पर आपका अनुमोदन रचना के प्रति मुझे भी आश्वस्त कर गया..इस मुखर सराहना कर  आश्वस्ति प्रदान करने के लिए मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 4, 2013 at 4:43pm

प्रिय गीतिका जी 

आपके पाठक मन को इस अतुकांत रचना का प्रवाह व तथ्य संतुष्ट कर सके ये इस रचना के लिए गौरव की बात है. मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ.

सस्नेह.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2013 at 4:11pm

बहुत खूब | अनसुलझे प्रश्न पर अन्तर्द्वन्द को बखूबी उकेरा है आपने |

पदचिन्हों की थाप छोड़ता 

बिम्ब युक्ति का स्वप्न सुहाना...

अन्तः की प्राचीरों को खंडित कर

देता दस्तक उर-द्वार खड़ा 

मृगमारीची सम

अनजाना - जाना पहचाना... बिलकुल यही होता है | दरअसल  जब मन से मन के तार मिले तो, अनजाना भी जाना पह्चाना लगता है |

पदचिन्हों की थाप भी धुन निकाल मद मस्त करदे | ऐसी चिंतन युक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई डॉ प्राची सिंह जी | वाह !

Comment by Neeraj Nishchal on July 4, 2013 at 2:47pm

बहुत गहरा लिखा है आपने तो ....अभी इतनी तो
हैसियत नही अपनी कि आपकी कविता के बारे में
कुछ कह पाऊं ........
अब इतनी सुन्दर कविता की तारीफ भी कैसे वर्णन हो .....
दीपक से रवि की आभा का कहिये किस भाँति प्रदर्शन हो ....
बहुत बहुत हार्दिक शुभ कामनाये प्राची जी ...........................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 4, 2013 at 2:43pm

//प्रकृति पुरुष सा सत्य चिरंतन

कर अंतर विस्तृत प्रक्षेपण

अटल काल पर

पदचिन्हों की थाप छोड़ता

बिम्ब युक्ति का स्वप्न सुहाना...//....असाधारण अभिव्यक्ति...पदचिन्ह यहाँ मूक इंगित  (छाप) नहीं अपितु सस्वर नाद ("थाप") हैं, चेतावनी हैं. इस रचना की गूंज मानस के अंजाने प्रकोष्ठ में भी झंकृत होती रहेगी लम्बे समय तक आदरणीया प्राची जी. आनंद की इस नयी अनुभूति से साक्षात्कार  कराने के लिये पाठक आपके ऋणी रहेंगे. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service