बहर : २१२ २१२
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जो सरल हो गये
वो सफल हो गये
जिंदगी द्यूत थी
हम रमल हो गये
टालते टालते
वो अटल हो गये
देख कमजोर को
सब सबल हो गये
भैंस गुस्से में थी
हम अकल हो गये
जो गिरे कीच में
वो कमल हो गये
अपने दिल से हमीं
बेदखल हो गये
देखकर आइना
वो बगल हो गये
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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
सुंदर सहज सरल पर मधुर मधुर गजल के लिए हार्दिक बधाई श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
छोटी बहर पर बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है आ० धर्मेन्द्र सिंह जी
जो गिरे कीच में
वो कमल हो गये..... बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई स्वीकार करें
आ0 धर्मेंद्र जी, *देखकर आइना, वो बगल हो गये* सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। सादर,
भाई धर्मेन्द्र सिंह जी, पांचवें शेअर (भैंस वाले) में "अकल" को किस वज्न में बाँधा है ?
आदरणीय धर्मेंदर जी, ज़रा सी ज़मीं पे बुलंद ग़ज़ल खड़ी की है .. हर शेअर कमाल लिए हुए है .. बहुत उम्दा ..
wah wah ,,,,,,,,itni small bahr me shandaar prayas ,,,really good
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