For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

की बोर्ड से चिपका
स्क्रीन की सुंदरता से मुग्ध
हर सवाल का जबाब
चेट्टिंग से चेट्टिंग तक
मोबाइल से चीटिंग करते
झूठ से भरमाते
फिर भी मुस्कुराते
आँखें कान नाक
सब अंधे
जिनसे हमेशा
रिसता है
ज़हरीला  
फरेब
ऐसे रिश्ते

प्रेम की पराकाष्ठा है  
आज का प्रेम


संदीप पटेल "दीप"

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 524

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on July 20, 2013 at 10:29am
यह आधुनिक रासलीला है जिसका पुर्नविन्यास और कभी-कभी तो पूर्णाहुति भी डिस्को क्लब या ऐसे किसी सार्वजनिक स्थल पर हो जाता है . घृणित है आज का दौर जीवन संदर्भ चाहे कोई भी हो . सब तार-तार है , नीरस और बेकार है .सामयिक विषय और आज की फोक्ली युवा पीढ़ी पर सही आकलन . साधुवाद संदीपजी .
Comment by वेदिका on July 19, 2013 at 4:21pm

हाई टेक प्यार को परिभाषित किया आपने,,

सटीक परिभाषा !!

बधाई स्वीकारें आदरणीय संदीप भैया !! 

Comment by राज़ नवादवी on July 19, 2013 at 9:53am

मेरी राय में 'ऐसे रिश्ते  प्रेम की पराकाष्ठा है  आज का प्रेम' की जगह  'ऐसे रिसते  प्रेम की पराकाष्ठा है  आज का प्रेम' ज़्यादा संगत होता!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2013 at 7:41pm

प्रेम की पराकाष्ठा है  
आज का प्रेम /फरेब - सही चिंतन आज के प्रेम प्यार पर, बधाई श्री संदीप भाई  -

फिर भी तो युवा है

प्रेम में लवरेज | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 7:06pm

" सच कहा आपने ,आदरणीय..संदीप भाई जी,..आज के प्रेम की ऐसी ही कुछ परिभाषाएं हैं ! रचना प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई

Comment by annapurna bajpai on July 18, 2013 at 1:47pm

आदरणीय दीप जी बहुत सही बात काही आपने । बहुत बधाई आपको ।

Comment by Parveen Malik on July 18, 2013 at 10:19am

जो दीखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दीखता नहीं ... झूट फरेब का मिश्रण भी होता है ..

बहुत सही व्याख्यान ... बधाई !

Comment by coontee mukerji on July 17, 2013 at 7:58pm

शायद इसी को प्रगति कहते है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 17, 2013 at 7:15pm

मैकेनाइज्ड ज़माने में प्रेम के मैकेनाइज्ड रूप और फरेब पर सुन्दर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई आ० संदीप जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service