बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
१२२२, १२२२
दिवाना दिल जिगर कर दो,
इधर भी तो नज़र कर दो,
फलक से चाँद लाऊं मैं,
इशारा तुम अगर कर दो,
अकेले रास्ता मुश्किल,
सुहाना तुम सफ़र कर दो,
हजारों मैं ग़ज़ल कह दूँ,
सरल थोड़ी बहर कर दो,
पिला दो हाँथ से अपने,
सुधा बेशक जहर कर दो,
मुहब्बत मैं अजय कर दूँ,
कहानी तुम अमर कर दो...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
अकेले रास्ता मुश्किल,
सुहाना तुम सफ़र कर दो,........वाह! बहुत खूब ,यह शेर जबर्दस्त है
आदरणीय अरुण अनंत जी, बहुत सुंदर गजल, तहे दिल से दाद कुबूल कीजियेगा
आदरणीय अरुण जी ,सुन्दर गजल के लिए बहुत बहुत बधाई
वाह! बहुत ही सुन्दर! अरुन भाई आपको हार्दिक बधाई इस प्रेम में पगी सुन्दर रचना पर!
बढिया है ..आदरणीय अनंत जी बधाई आपको
अच्छी ग़ज़ल हुई है| बह्र को १२ के बजाय २१ में बांधना सही है| शुभकामनाएं|
बहुत सुन्दर बहुत लाजवाब ।
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