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इस अन्वेषण का हेतु और प्राप्य अत्यंत तोषकारी है. आपकी प्रगल्भता इस बात की साक्षी है, कि सटीक और सहज विन्यास क्या कमाल कर सकता है. आपकी प्रस्तुत रचना इसका सुन्दर उदाहरण है, भाई रविप्रकाश जी .
आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा, भाई.
शुभेच्छाएँ
वाह !!!!! आदरणीय रवि जी, कलकल - छलछल प्रवाहमयी रचना ने मन को मोह लिया है. बहुत-बहुत बधाइयाँ....
रवि जी बहुत सुन्दर
कविता का प्रवाह प्रशंसनीय है| कविता शीर्षक से पूरी तरह से जुडी हुई है और अपने कथ्य को जनमानस तक प्रेषण करने में सक्षम है| हार्दिक बधाई|
सुंदर व् प्रभाव शाली रचना पर,हार्दिक बधाई ,आदरणीय रवि जी
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... |
ह्रदय स्पर्शी ! मार्मिक वर्णन ! बेहतरीन शब्द संयोजन
इतने सुन्दर लेखन के लिए आपको हार्दिक बधाई एवम सुभकामनाये
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