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काश ! रमजान इतना लम्बा होता कि उम्र कट जाती …. धरम ,करम होता और ईमान ही ईश्वर …. लघु का घनत्व बहुत ज्यादा है …बधाइयाँ …
वाह.... समाज के पहलुओं पर इतना जोरदार वार करने में आप महारत रखते हैं.
वैसे...मटन बना कैसा था?????
Bahut hi sunder laghu katha, Baghi ji. Kam se Kam Ramadan ke mahine main to Imaandari se kuchh log kaam karte hain. Par saare nahin.
क्या तीरछी धार मारा है.....सादर
:) ... सुन्दर कहानी, लघु तो सिर्फ नाम की है.... ईमान और इरादों पर करारा व्यंग है... सादर
आदरणीय बागी ही ..वाह !! बाजारवाद कैसे दिन ईमान को बेच देती है इस कटु यथार्थ का बड़ी ही सरलता से आपने लघु कथा में रेखांकित किया ..साधुवाद आपको .सादर
prabhavi laghukatha ..
बहुत मार्मिक व्यंग्य ....गागर में सागर .....कटु सत्य भी.......ये तो फिर भी रमजान में नए बाट, तराजू हैं . दिवाली पे तो खुली लूट रहती है...
प्रभावी लघु कथा बागी जी...सादर बधाई !
बहुत खूब बागी जी। शानदार लघुकथा। इस विधा आप निःसंदेह महारथ हासिल करते जा रहे हैं। दाद कुबूल करें।
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