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सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ

सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ

चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ

 

जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही

मौत आयी तब कही जलसा हुआ

 

रोटियां सब  सेंकने में थे लगे

घर किसीका देखकर जलता हुआ

 

जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे

आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ

 

चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को

इक शजर बस फूलता-फलता हुआ 

               

बिस्मिल = ज़ख्मी 

 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 10, 2013 at 6:31pm

सभी आदरणीय मित्रों एवं सुधीजनों का दिल से शुक्रिया 

Comment by विजय मिश्र on August 10, 2013 at 5:03pm
बहुत खूब , हकीकत बयानी के लिए शुक्रिया .
Comment by बसंत नेमा on August 10, 2013 at 1:47pm

अति सुन्दर रचना  अति सुन्दर भाव ...बधाई .

Comment by Shyam Narain Verma on August 10, 2013 at 1:12pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by राज़ नवादवी on August 10, 2013 at 12:17pm

सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ

चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ

 

जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही

मौत आयी तब कही जलसा हुआ

- अच्छे अशआर हैं जनाब, मुबारक!

Comment by Ketan Parmar on August 10, 2013 at 11:19am
bahut achi rachna hai adarniya lalit sir
bbadhaai ho

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