सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ
चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ
जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही
मौत आयी तब कही जलसा हुआ
रोटियां सब सेंकने में थे लगे
घर किसीका देखकर जलता हुआ
जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे
आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ
चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को
इक शजर बस फूलता-फलता हुआ
बिस्मिल = ज़ख्मी
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
सभी आदरणीय मित्रों एवं सुधीजनों का दिल से शुक्रिया
अति सुन्दर रचना अति सुन्दर भाव ...बधाई .
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ
चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ
जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही
मौत आयी तब कही जलसा हुआ
- अच्छे अशआर हैं जनाब, मुबारक!
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