!!! निरगुन !!!
मन है मेरा गंगा-जमुना,
तन वृन्दावन भाए।
नील गगन से नयनागर मे,
नटवर की छवि पाऊं प्रियतम!
नयन नीर छलकाए।
मन मन्दिर में मनमोहन सी,
मूरत सदा बसाऊं प्रियतम!
मन चंचल भरमाए।
सुध-बुध खोकर बुध्दि विचारूं,
ज्ञान-विराग लुटाऊं प्रियतम!
पग-पग नृत्य कराए।
निश-दिन तेरी ज्योति निहारूं,
लौ आत्मा से पाऊं प्रियतम!
यह तन दीप सुहाए।
प्रेम दया करूणाकर तुम हो,
सदा प्रेम रस गाऊं प्रियतम!
वचन भजन बन जाए।
मानसरोवर के हंसा तुम,
मैं अति पाप कहाऊं प्रियतम!
दया-क्षमा चितलाए।
मन सुख है गंगा की धारा,
तन भव नाव कहाऊं प्रियतम!
नाम सुमिर तर जाएं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत ही सुंदर भक्तिमय प्रस्तुति हुई है मित्रवर, ढेरों बधाईयां
आदरणीय केवल जी, सुंदर शब्दों से पिरोई सुंदर रचना पर, हार्दिक बधाई स्वीकारें
आ0 अरून अनन्त भाई जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह, आत्मीयता और उदारता के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
आ0 नीरज भाई जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह, कविता प्रेम और उदारता के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
वाह वाह आदरणीय केवल भाई जी मन खुश कर दिया बेहद सुन्दर रचना हार्दिक बधाई स्वीकारें
आ0 संदीप भाई जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और आशीष वचन के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
आ0 विजय सर जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह, सुन्दर विचार और आशीष वचन के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
आ0 अन्नपूर्णा जी, आपके स्नेह और आशीष वचन के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
sundar nirgun rachna hetu bahut badhai adarniy kewal bhai ji .
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