तिरंगे को लहराता देख
लगता है
हम आज़ाद हैं
आज़ादी सापेक्ष होती है
आज़ाद हैं अंग्रेजों से
जिंदगी तो अब भी वैसी ही है
वही साँसें
वही चीथड़े
वहीं चाँद
टूटता तारा
वही कुआँ खोदना
फटी जेबें
वही बिवाइयाँ।
कहाँ बदला कुछ
राजाओं के रंग बदल गये
भाषा वही है
सत्ता का चेहरा बदलता है
चरित्र नहीं
आजादी का मतलब
निरंकुशता की समाप्ति तो नहीं
हिटलर मुखौटे पहन लेता है बस
फिर भी
इस गण के तंत्र में
जहाँ जन के मन की बात
कोई नहीं सुनता
‘जन-गण-मन’ गाना अच्छा लगता है।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सही कहा आदरणीय बृजेश जी आपने आज मुल्क के नुमाइंदे ही लोक तंत्र के नाम पर राज कर रहे हैं, पहले हम अँग्रेज़ों के गुलाम हुए अब अपने देश में अपने ही नुमाइन्दो के गुलाम बन के रह गये हैं, अपनी इस सशक्त रचना के लिए दाद क़ुबूल करें.
आदरणीया अन्नपूर्णा जी अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार!
आदरणीया विनीता जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय नीरज जी आपका हार्दिक आभार!
सच है; यह आजादी तो सापेक्ष ही कही जाएगी. अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्ति मिल गयी लेकिन असली आज़ादी तब तक नहीं मिलेगी, जब तक मानसिक पराधीनता से उबर नहीं पायेंगे. हार्दिक बधाई एवं साधुवाद.
बृजेश जी बहुत ही गहरे सवाल खड़े कर रखे हैं आपने अपनी कविता में ,
और जिस आज़ादी की मांग आपकी कविता कर रही है वो तो तब तक
मिलने से रही जब तक इंसान खुद से आज़ाद नही हो जाता अपनी
मानसिकताओं से आज़ाद नही हो जाता हर एक इंसान कम से कम अपना गुलाम
तो है ही अपने मन के आगे तो बड़े बड़े शहंशाह भी लाचार हो जाते हैं ,
हमारी एक समस्या तो यही है हम जड़ को छोड़ कर डालों पत्तियों और
फलों में उलझ जाते हैं हर एक चीज हम से शुरू होती है और हर शुरुवात
हमे खुद से ही करनी पड़ेगी ...........
और एक बात ओशो आचार्य रजनीश जी ने कही है जो बड़े काम की है
यहाँ भृष्टाचार के खिलाफ आवाज़ वही उठाता है जिसे भृष्टाचार करने
का मौका नहीं मिला है .....एक सीधा सादा इंसान भी सत्ता पाकर
हिटलर हो जाए तो भी आश्चर्य की बात नही ।
आज़ादी चाहिए अपने मन की क्षुद्रता से मन के अभिमान से ,
अपनी क्षुद्र सोच से आदतों से , इस तरह जब एक एक इंसान
अपनी क्षुद्रता से आज़ाद होगा तो विराट में अग्रसर होगा
इंसान उतना ही विराट है जितना स्वतंत्र और उतना ही क्षुद्र है
जितना परतंत्र ।और विराट आनंददायी और जो आनंदित है
वो सबको आनंदित करता है और जो स्वतंत्र है वो सबको स्वतंत्र
करता है ........
आपकी कविता सोचने पर मजबूर करती है और साधारण
ढंग में बहुत असाधारण तथ्यों को उजागर करती है ।
इसके लिए बहुत बहुत आभार ।
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