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आदरणीय इमरान भाई जी अच्छी गजल हुई है । बधाई ।
अलविदा ज़िन्दगी को कहें,
जाके तब कुछ क़रार आयेगा।
ग़ज़ल तो आपकी बहुत प्यारी है
पर ये दावा कैसे कर सकते हैं आप
कविता में कल्पना ही नही कुछ
प्रैक्टिकल भी होना चाहिए ।
इमरान भाई अच्छा लिखते है आप !
अलविदा ज़िन्दगी को कहें,
जाके तब कुछ क़रार आयेगा।
kAAFIYA BAHUT HI ACHA LIYA HAI KOI UNGLI NAHI UTHA SAKTA
DAAD QABOOL KARE BHAI JAAN
लाजवाब भाई इमरान , क्या कहने !!
गुल है 'इमरान' बिखरा भी तो,
ज़र्रे ज़र्रे को महकायेगा।
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