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मेरे दिल को न चैन आयेगा

मेरे दिल को न चैन आयेगा,
उम्र सारी मलाल आयेगा।

नूर मुझसे ख़फ़ा है तो फिर,
बस अँधेरा करीब आयेगा।

आसमाँ पर है सूरज अगर,
चाँद कैसे भला आयेगा।

बददुआयें वो देने लगे,
अब मुकद्दर क़हर ढायेगा।

हमनशीं बन गया एक फिर,
देखें कब तक निभा पायेगा।

मुझसे लेता रहा उल्फतें,
तोहमतें वो जो दे जायेगा।

अलविदा ज़िन्दगी को कहें,
जाके तब कुछ क़रार आयेगा।

वो जो सीने से लगते थे अब,
पीठ पर उनका वार आयेगा।

गुल है 'इमरान' बिखरा भी तो,
ज़र्रे ज़र्रे को महकायेगा।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by इमरान खान on August 17, 2013 at 9:36am
नीरज भाई आपका शुक्रिया, इंगित शेर में जिंदगी को अलविदा कहना एक उपमा है, इसे आप इच्छायें मारनें के परिप्रेक्ष्य में लें। जहाँ तक काव्य में प्रेक्टिकल अप्रोच का प्रश्न है मेरा कहना है अगर उपमाओं का प्रयोग न किया जाये तो मफहूम समझाने में परेशानी हो जायेगी
Comment by इमरान खान on August 17, 2013 at 9:22am
शुक्रिया अमन भाई हौसला अफजाई का
Comment by इमरान खान on August 17, 2013 at 9:21am
केतन भाई आपकी टिप्पणी रूचिकर है धन्यवाद आपका
Comment by इमरान खान on August 17, 2013 at 9:17am
बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भाई
Comment by annapurna bajpai on August 16, 2013 at 11:27pm

आदरणीय इमरान भाई जी अच्छी  गजल हुई है । बधाई ।

Comment by Neeraj Nishchal on August 16, 2013 at 4:52pm

अलविदा ज़िन्दगी को कहें,
जाके तब कुछ क़रार आयेगा।

ग़ज़ल तो आपकी बहुत प्यारी है
पर ये दावा कैसे कर सकते हैं आप
कविता में कल्पना ही नही कुछ
प्रैक्टिकल भी होना चाहिए ।

Comment by aman kumar on August 16, 2013 at 4:20pm

इमरान भाई अच्छा लिखते है आप !

अलविदा ज़िन्दगी को कहें,
जाके तब कुछ क़रार आयेगा।

Comment by Ketan Parmar on August 16, 2013 at 1:14pm

kAAFIYA BAHUT HI ACHA LIYA HAI KOI UNGLI NAHI UTHA SAKTA

DAAD QABOOL KARE BHAI JAAN


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Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 1:05pm

लाजवाब  भाई इमरान , क्या कहने !!

गुल है 'इमरान' बिखरा भी तो,
ज़र्रे ज़र्रे को महकायेगा।

कृपया ध्यान दे...

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