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गज़ल --" क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है "

2122    2122   2122    2122

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क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है

धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है

 

बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही है

 

इस जगह पर तो ख़िज़ां ने भी बहारें ओढ़ ली है

इसलिये ही ज़िन्दगी हर बार धोखा खा रही है

 

गुफ़्तगू  कुछ तो मोहब्बत और नफ़रत मे चली है 

वो भी कुछ समझा रही है ये भी कुछ समझा रही है

 

दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  

 

बातिलों में वज़्न कितना ?झूठ की औकात कितनी ?

क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है

                 ***************

मौलिक एवँ अप्रकाशित्

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2013 at 4:35pm

श्याम भाई., गज़ल की के सराहना के लिये आपका बहुत आभार !!!!

Comment by Shyam Narain Verma on August 23, 2013 at 3:59pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2013 at 2:43pm
विनिता जी , सराहना के लिये आपाका दिली आभार !!
Comment by Vinita Shukla on August 23, 2013 at 1:38pm

वाह, बहुत बढिया...बधाई आपको गिरिराज जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2013 at 1:14pm

आदरणीया लता जी , रचना की सराहना के लिये आपका दिली  आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2013 at 1:11pm

नादिर भाई . हौसल अफज़ाई ले लिये बहुत शुक्रिया !!

Comment by Lata tejeswar on August 23, 2013 at 12:21pm

इस जगह पर तो ख़िज़ां ने भी बहारें ओढ़ ली है

इसलिये ही ज़िन्दगी हर बार धोखा खा रही है

उम्दा गज़ल के लिए बढाई .

Comment by नादिर ख़ान on August 23, 2013 at 11:41am

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  

 

बातिलों में वज़्न कितना ?झूठ की औकात कितनी ?

क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है

अदरणीय गिरि राज  जी, उम्दा गज़ल के लिए बढाई ...

                


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 10:28pm

शिज्जू भाई , आपने तो मेरा हौसला बढा दिया  बहुर शुक्रिया !!!

आपने जो सलाह दिया है मै खुद अन्धेरा शब्द के लिये शंकित था , कि मात्रा गिराना यहाँ सही है कि नही , आदरणीय वीनस भाई को लिखा भी हूँ निश्चित करने के लिये !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 10:20pm

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , आपका बहुत बहुत आभार !!

कृपया ध्यान दे...

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