बहू बनाम बेटी
राधा जी घर मे अकेली थी , बेटा बहू के साथ उसकी बीमार माँ को देखने चला गया था । उसने कुछ पूछा भी नहीं बस आकार बोला – माँ हम लोग जरा कृतिका की माँ को देखने जा रहे है शाम तक आ जाएँगे । आपका खाना कृतिका ने टेबल पर लगा दिया है टाइम पर खा लेना , तुम्हारी दवाएं भी वही रखी है खा लेना भूलना मत ,और दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना ।” कहता हुआ वो कृतिका के साथ बाहर निकल गया । पर बहू ने एक शब्द भी न कहा । “क्या वो कहती तो क्या मै मना कर देती । बहुयेँ कभी बेटी नहीं बन सकती आखिर बेटी तो बेटी ही होती है । “ वे सोचती हुई गेट तक आई और अच्छी तरह गेट बंद कर दिया । बाहरी कमरे मे टी वी ऑन कर बैठ गई। कुछ ही देर बाद डोर बेल घनघना उठी । उठ कर दरवाजा खोला देखा उनकी अपनी बेटी दामाद के साथ खड़ी है । खुशी से उनका चेहरा खिल उठा । बेटी को गले लगाते हुए पूछा- “तेरी सास ने मना नहीं किया ”, “वह बोली उनकी सुनता कौन है उनके लिए तो उनका बेटा है , वही उनको संभाल लेते है मै तो बोलती भी नहीं । और आज भी ये ही उन्हे बोल कर आए हैं मैंने न उनसे कुछ पूछा न कहा । बस ड्यूटी पूरी कर देती हूँ ताकि बेटे से शिकायत का मौका न मिले । बाप रे ! ससुराल का चैपटर मेरे बस का नहीं । ” मुसकुराते हुए उन्होने अपनी बेटी की इस करतूत को कितनी आसानी से भुला दिया।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय अजय कुमार जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय राज जी आपको कथा अच्छी लगी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी आपका कथन बिलकुल सही है बीबी का पल्लू पकड़ने वाला दामाद तो लाखों मे एक होता है किन्तु बेटा जोरू का गुलाम , यही सोच बदलने अवश्यकता है ।
सच कहा आपने नैतिकता इसी दोगलेपन का शिकार होकर विकलांग होती जा रही है
बड़ी ही सरलता और सीधे तरीके से आपने चित्रित किया है, अत्यंत सामान्य तरीके और शब्दों से ... अच्छी लघु कथा के लिए शुभकामनाये.....
सचमुच, हमारे जीवन में मूल्यांकन के दोहरे मापदंड हैं. बधाई हो अन्नपूर्णा जी एक सशक्त प्रस्तुति के लिए!
आ0 अन्नपूर्णा जी, वाह! वाह! आगे आगे देखिए होता है क्या?...बेहतरीन प्रस्तुति। हृदयतल से बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें। सादर,
आ.अन्नपूर्णा जी, ये ही एक सशक्त कथा, बेटी और बहु का अन्तर एक महिला के द्वारा सुन कर अच्छा लगा. शायद ये ही अन्तर बेटे और दमाद में भी होता है....बीबी का पल्लु पकडनेवाला दमाद लाखों में एक और बेटा जोरु का गुलाम हो जाता है....क्या करे पुरुष???हा...हा....
सादर..
वाह !!! अन्नपूर्णा जी , बहुत सही समस्या पर ध्यान केन्द्रित करवाया आपने , हर घर की लगभग यही कहानी है !!ये भूल जाते है कि खुद की बेटी भी तो किसी की बहू है , और गलतियां नज़र अन्दाज़ कर देते है !!
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