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!!! यही ‘सत्यम’ शिवम् सुन्दर हुआ है !!!

!!! यही ‘सत्यम’ शिवम् सुन्दर हुआ है !!!
बह्र- 1222 1222 122

सकल दुनिया दिखाता जा रहा हूं।
कयामत का सफर सुलझा रहा हूं।।

मेरे मौला मैं तुझको क्या बताऊं,
रूहानी पीर के जैसा रहा हूं।

तेरी चौखट सदा मुझको लुभाती,
कभी तीखा कभी मीठा रहा हूं।

जहां में और भी गम हैं कहूं क्या?
जहां मेला वहीं तन्हा रहा हूं।

मेरी मां ने कहा था सुब्ह उठकर,
पिलाना आब, वो दरिया रहा हूं।

अमीरी छोड़ कर मुफलिस कहाऊं,
तेरे सद् द्वार का सच्चा रहा हूं।

नहीं भाता मुझे अब कोई वादा,
सदा कर्मो में मैं डूबा रहा हूं।

तेरी उल्फत में रंजो गम भुला कर,
अभी तक प्यार को समझा रहा हूं।

बयानी का सदा दस्तूर आसां,
यहां मजहब लड़ें पछता रहा हूं।

कड़ी मिन्नत दुआ बनकर फली जो,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूं।

यही ‘सत्यम’ शिवम् सुन्दर हुआ है,
दया करूणा लुटा हॅसता रहा हूं।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by राजेश 'मृदु' on August 30, 2013 at 3:24pm

गज़ल पर आपने प्रयास किया, चलिए यहां आप हमसे अधिक हिम्‍मतवाले निकले, मैं रिदम पर चलने वाला आदमी हूं वो गड़बड़ लगी तो जरूर कहूंगा । आपकी इस गज़ल में हिंदी-उर्दू शब्‍दों का मेल-मिलाप मुझे जंचा नहीं । प्रवाह में पहली दो पंक्ति ही गच्‍चा दे गई । खैर आप लगे तो हैं जो अपने आप में बड़ी बात है । थोड़ी अपेक्षा ज्‍यादा रखता हूं, सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 30, 2013 at 11:03am

आदरणीय केवल भाई आपका परिश्रम रंग ला रहा है बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है कुछ शे'रों में तकाबुले रदीफ़ का दोष है कृपया उन्हें सुधार लें. इस शानदार ग़ज़ल पर ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 29, 2013 at 8:38pm

आ0 जवाहर भाई जी,    आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 29, 2013 at 7:21pm

वाह वाह ..सत्यम शिवम सुन्दरम! बधाई!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 29, 2013 at 7:21pm

वाह वाह ..सत्यम शिवम सुन्दरम! बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 29, 2013 at 6:31pm

आ0 जितेन्द्र भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 29, 2013 at 6:30pm

आ0 भण्डारी भाई जी,  आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका अतिशय हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 28, 2013 at 9:33pm

आदरणीय केवल जी , बहुत बढ़िया गजल , हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 28, 2013 at 5:46pm

केवल भाई , बड़ी अच्छी गज़ल हुई , वाह वाह !! बधाई !!

मेरी मां ने कहा था सुब्ह उठकर,
पिलाना आब, वो दरिया रहा हूं।   ---------- वाह वाह !!

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