For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्षमा दान ( लघु कथा )

रात के बारह बज रहे थे , रोहित नशे हालत मे घर मे दाखिल हुआ उसकी भी पत्नी साथ मे ही थी । पिता दुर्गा प्रसाद कडक कर बोले – “ ये क्या तरीका है घर मे आने का , कैसे बाप हो तुम जिसको बच्चों का भी ख्याल नहीं । और ये तुम्हारी पत्नी , इसको भी कोई कष्ट नहीं ।”  रोहित तमतमा उठा न जाने क्या क्या उनको कह डाला । वे बेटे के पलटवार के लिए तैयार न थे वह भी बहू और बच्चों के सामने । सिर झुकाये सुनते रहे कुछ बोल नहीं पाये । एक वाक्य ही उन्होने अपनी पत्नी से कहा ,” हमारी परवरिश मे खोट है । ”  वे कमरे मे जाकर चुपचाप लेट गए । सुबह जब उनकी पत्नी की आँख खुली तो उन्होने देखा कि दुर्गा प्रसाद जी खुली आंखो से एक टक छत को निहार रहे है।  वे बोलते हुये उठीं – “ जवान खून है आप भी नाहक ही भिड़ गए उससे वह भी उसके बीवी बच्चों के सामने । अब चलिये उठिए , मै चाय बनती हूँ आप फ्रेश होकर आइए । “ जब वे वॉश रूम से बाहर आई तब तक दुर्गा प्रसाद जी वैसे ही लेटे हुये थे । उन्होने पास जाकर ज़ोर से हिलाया – “अब उठिए भी”    किन्तु यह क्या वे तो पत्थर हो गए थे । एकदम शांत कोई भाव नहीं किसी कोई शिकायत ही नहीं । वे तो महाप्रयाण पर चल दिये थे । बेटा बहू अब तक सोये थे । माँ की चीख सुनकर बाहर आए, माँ को पिता के शरीर से लिपट कर बिलखता देख रोहित रो पड़ा – “पिता जी इतनी बड़ी सजा दे डाली , मै तो अपनी गलती के लिए आपसे क्षमा मांगना  चाहता था ।“ माँ बिलखते हुये बोली – “ सजा कहाँ रे ! वे तो तुझे जीवन भर के लिए क्षमा दान दे गए।”

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

Views: 1241

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 11:45am

वर्तमान की सामाजिक व्यवस्था पर कटाक्ष करती मार्मिक रचना.. 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 31, 2013 at 11:31am

आदरणीय अन्नपूर्णा जी, सामाजिक व्यवस्था में आते बदलाव को इंगित करती एक सशक्त कथा है.

आज कल परवरिश पर एक समय के बाद परिवेश हावी होने लगता है. आधुनिकता के नाम पर कई वस्तुओं या विचारों को हम सामाजिक रुप से स्वीकार करते जा रहे हैं जिसके विस्तार या सर्वग्राह्यता से अव्यवस्था फ़ैल सकती है.जिसे हम नाकार नहीं सकते हैं.

सुबह दूर्गा प्रसाद जी का महानिर्वाण दिल में एक हुक सी दे जाता है..... बधाई

सादर  

Comment by annapurna bajpai on August 30, 2013 at 4:18pm

आदरणीय राजेश झा जी आजकल बच्चे माता पिता से नहीं सीखते उनकी अपनी निजी ज़िंदगी होती है वे किसी की दखलंदाजी भी बर्दाश्त नहीं करते ।

Comment by annapurna bajpai on August 30, 2013 at 4:13pm

आ० राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार ।

Comment by annapurna bajpai on August 30, 2013 at 4:13pm

आदरणीय भण्डारी जी एकदम सही बात कही आपने । आपका हार्दिक आभार ।

Comment by annapurna bajpai on August 30, 2013 at 4:11pm

आ0 शुभ्रा जी आपकी बात सही है । आपका आभार ।

 

Comment by annapurna bajpai on August 30, 2013 at 4:09pm
आदरणीय जितेंद्र जी आपका हार्दिक आभार ।
Comment by राजेश 'मृदु' on August 30, 2013 at 3:55pm

यहां एक प्रश्‍न उपस्थित होता है कि जिनके पिता इतने संवेदनशील हैं, वो बुरी संगति में कैसे फंसा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 30, 2013 at 12:12pm

निःशब्द हूँ पढ़ कर अन्दर तक झिंझोड़ कर रख दिया इस लघु कथा ने कम शब्दों में गहरी बात यही विशेषता होती है लघु कथाओं में जिसकी कसौटी पर आपकी ये लघु कथा बिलकुल खरी है बहुत बहुत बधाई अन्नापूर्ण जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2013 at 11:44am

अन्नपूर्णा जी , सुदर लघु कथा !! वक़्त जब खुद सिखाता है तो किसी वक़्त नही देता !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
5 hours ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
6 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
6 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service