तुम मेरी बेटी नही
बल्कि हो बेटा...
इसीलिये मैंने तुम्हें
दूर रक्खा शृंगार मेज से
दूर रक्खा रसोई से
दूर रक्खा झाडू-पोंछे से
दूर रक्खा डर-भय के भाव से
दूर रक्खा बिना अपराध
माफ़ी मांगने की आदतों से
दूर रक्खा दूसरे की आँख से देखने की लत से....
और बार-बार
किसी के भी हुकुम सुन कर
दौड़ पडने की आदत से भी
तुम्हे दूर रक्खा...
बेशक तुम बेधड़क जी लोगी
मर्दों के ज़ालिम संसार में
मुझे यकीन है...
(मौलिक और अप्रकाशित /अप्रसारित)
Comment
ग़ज़ब .. . एकदम से ज़मीनी बात
बधाई
अति सुंदर रचना ,आदरणीय अनवर साहब बहुत बहुत बधाई
सार्थक अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई
सार्थक सशक्त अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई
सुंदर भावपूर्ण रचना आदरणीय बहुत बधाई !!
आ0 अनवर भाई जी, अप्रतिम रचना। हृदयतल से बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें। सादर,
अनवर भाई, अति सुन्दर रचना !!बधाई स्वीकार करें !!
आदरणीय अनवर जी ,आज के परिस्थितियों में लड़कियों के साथ होने वाले अकल्पनीय घटनायों पर तीखा व्यंग , बहुत खूब
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... |
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