खट- खट की आवाज सुनकर गली के कुत्ते भौंकने लगे। चोर कुछ देर शांत हो गये। थोड़ी देर बाद फिर से खोदने लगे। कुत्ते फिर भौंकने लगे।
चोरों ने डंडा मारकर कुत्तों को भगाना चाहा, लेकिन कुत्ते निकले निरा ढीठ, वे और तेज भौंकने लगे। लाल मोहन ही क्या अब तो सारा मुहल्ला जाग चुका था । लेकिन किसी ने अपने बिस्तर से उठकर बाहर यह पता करने की ज़हमत नहीं उठायी कि कुत्ते भौंक क्यों रहे थे ।
सुबह-सुबह पूरे मुहल्ले में यह ख़बर आग बनी थी, लाल मोहन लुट चुका है।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विध्येश्वरी प्रसाद जी, एक कथन है, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अब वो केवल प्राणी है. समाजिकता कहीं खो गयी है. इसी बात को शानदार ढंग से रखने के लिये बधाई. कुत्ते अपने काम को आज तक बखुबी कर रहे हैं.
गीतिका जी की बातों से सहमत हूँ कि पहली लाइन की उतनी आवश्यकता नहीं थी.
सादर.
सच! हर इन्सान अपने में ही मस्त है, कहीं कुछ भी हो , कोई मतलब नहीं, बहुत बढ़िया लघुकथा , हार्दिक बधाई आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी
अपने अपने घरौंदों में मस्त आदमी कितना आत्मेंद्रित है.. कि ऐसे संकेतों को जानते बूझते भी नज़रंदाज़ करता है.. समाज में पड़ोसियों के व्यवहार में अतिक्रमण कर चुकी इस उदासीनता को सुंदरता से प्रस्तुत किया है.
हार्दिक बधाईप्रिय अनुज विन्ध्येश्वरी जी
आदरणीय त्रिपाठी जी अच्छी कथा बधाई स्वीकार करे
बहुत अच्छी कथा हुयी| मेरे विचार से अगर पहली लाइन से लाल मोहन के नाम को हटा दिया जाता, और सीधे आखिरी में लाल मोहन के चेहरे के भाव और भी ज्यादा विद्रूप होते| तो कथन और भी प्रभावशाली होता| इसे सिर्फ मेरा व्यक्तिगत विचार ही समझिये|
बढ़िया लघुकथा के लिए बधाई !!
आदरणीय विनय जी समाज के कटु सत्य को दर्शाती आपकी कथा प्रभावशाली है । आपको बधाई ।
विन्ध्येश्वरी भाई ! बहुत सही और बहुत कड़्वी सच्चाई आपने लघुकथा मे उजागर किया है ! बधाई !!
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