For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खट- खट की आवाज सुनकर गली के कुत्ते भौंकने लगे। चोर कुछ देर शांत हो गये। थोड़ी देर बाद फिर से खोदने लगे। कुत्ते फिर भौंकने लगे।

चोरों ने डंडा मारकर कुत्तों को भगाना चाहा, लेकिन कुत्ते निकले निरा ढीठ, वे और तेज भौंकने लगे। लाल मोहन ही क्या अब तो सारा मुहल्ला जाग चुका था । लेकिन किसी ने अपने बिस्तर से उठकर बाहर यह पता करने की ज़हमत नहीं उठायी कि कुत्ते भौंक क्यों रहे थे ।

सुबह-सुबह पूरे मुहल्ले में यह ख़बर आग बनी थी, लाल मोहन लुट चुका है।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 881

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 5:48pm
आदरणीया वेदिका दीदी! आपने अनुज को उत्तम प्रबोध दिया, जिसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 5:46pm
आदरणीया अन्नपूर्णा जी! आपने कथा को अपना आशीर्वाद प्रदान किया, अनुज कृतकृत्य है।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 5:45pm
आदरणीय गिरिराज जी! आपने लघुकथा को सराहा, अपने आशीर्वाद से कृत्कृत्य किया, मैं आपका हृदय से आभारी हूँ।
Comment by Shubhranshu Pandey on August 31, 2013 at 5:13pm

आदरणीय विध्येश्वरी प्रसाद जी, एक कथन है,  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अब वो केवल प्राणी है. समाजिकता कहीं खो गयी है. इसी बात को शानदार ढंग से रखने के लिये बधाई. कुत्ते अपने काम को आज तक बखुबी कर रहे हैं. 

गीतिका जी की बातों से सहमत हूँ कि पहली लाइन की उतनी आवश्यकता नहीं थी. 

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 5:04pm

सच! हर इन्सान अपने में ही मस्त है, कहीं कुछ भी हो , कोई मतलब नहीं, बहुत बढ़िया लघुकथा , हार्दिक बधाई आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 3:15pm

अपने अपने घरौंदों में मस्त आदमी कितना आत्मेंद्रित है.. कि ऐसे संकेतों को जानते बूझते भी नज़रंदाज़ करता है.. समाज में पड़ोसियों के व्यवहार में अतिक्रमण कर चुकी इस उदासीनता को सुंदरता से प्रस्तुत किया है.

हार्दिक बधाईप्रिय अनुज विन्ध्येश्वरी जी 

Comment by shubhra sharma on August 31, 2013 at 2:24pm

आदरणीय त्रिपाठी जी अच्छी कथा बधाई स्वीकार करे 

Comment by वेदिका on August 31, 2013 at 1:07pm

बहुत अच्छी कथा हुयी|  मेरे विचार से अगर पहली लाइन से लाल मोहन के नाम को हटा दिया जाता, और सीधे आखिरी में लाल मोहन के चेहरे के भाव और भी ज्यादा विद्रूप होते| तो कथन और भी प्रभावशाली होता| इसे सिर्फ मेरा व्यक्तिगत विचार ही समझिये| 

बढ़िया लघुकथा के लिए बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 12:59pm

आदरणीय विनय जी समाज के कटु सत्य  को दर्शाती आपकी कथा प्रभावशाली है । आपको बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 31, 2013 at 11:01am

विन्ध्येश्वरी भाई ! बहुत सही और बहुत कड़्वी सच्चाई आपने लघुकथा मे उजागर किया है ! बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
1 hour ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service