ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |
पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रविकर जी , अनुपम रचना के लिये बधाई स्वीकार करें !!
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
रविकर जी की सदा जय हो !..........
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||..sateek prahar.
रविकर जी बधाई!
रविकर जी , बधाई हो
सुन्दर दोहों की रचना के लिए
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