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हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे-

ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |


पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |


तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||

मौलिक / अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 3, 2013 at 1:44pm

आदरणीय रविकर जी , अनुपम रचना के लिये बधाई स्वीकार करें !!

Comment by विजय मिश्र on September 3, 2013 at 12:48pm
सारयुक्त रचना हेतु बधाई रविकरजी ,निश्चित रूप से - इन परिस्थितियों में नैतिकता हारे .
Comment by aman kumar on September 3, 2013 at 11:38am

तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||

रविकर जी की सदा जय हो !..........

Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 10:33am

तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||..sateek prahar.

रविकर जी  बधाई!

Comment by Ashish Srivastava on September 2, 2013 at 9:26pm

रविकर जी , बधाई हो 

सुन्दर  दोहों की रचना के लिए 

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