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नव गीत --आ चल फिर बच्चे हो जायें ( गिरिराज भंडारी )

नव गीत

*******

आ चल फिर बच्चे हो जायें

खेलें कूदे मौज मनायें

बिन कारण ही,

रोयें गायें , हँसे  हँसायें,

आ चल फिर बच्चे हो जायें !

 

मेरी कमीज़ है गन्दी तो क्या

तू कुछ उजला उजला तो क्या

मिट्टी मे खेलें,

धूल उड़ायें ,

चल हम सब गन्दे हो जायें

आ चल फिर बच्चे हो जायें !!

 

मै दौड़ूं  तू पीछे आये

मुझे धकेले और गिराये

चोट लगे मुझको, मै रो दूँ

तू डर जाये ,

दौड़े दौड़े पास मे आये

मै उठ न पाउँ,

मुझे उठाये ,

घर पहुंचाये ,

मात- पिता की गाली खायें

आ चल फिर बच्चे हो जायें !!!

 

फिर दूजे दिन,

कल को भूलूँ ,

रस्ता देखूँ ,

कि तू आये , मुझे मनाये

मै मानूँ , फिर भागे दौड़ें

फिर मुझे गिराये ,

और उठा के घर पहुँचाये

आ चल फिर बच्चे हो जायें !!!!

मौलिक एवँ अ प्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 12:41pm
आदरणीय लक्ष्मण भाई , सराहना के लिये आभार !! सलाह के लिये आपका बहुत धन्यवाद ! ये फिर से बच्चे हो जाने की आकांक्षा चुंकि बड़ो की है इसीलिये मै यहाँ पोस्ट कर दिया था ,बच्चों को फिर बच्चे हो जाने की आकान्क्षा बेमानी है ,क्योंकि वो आज बच्चे ही हैं ! पर शायद मै गलत था !! सादर !!
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2013 at 11:54am

सुन्दर सार्थक रचना के लिए बधाई श्री गिरिराज भंडारी जी, कुछ क्षण के लिए बच्चे के रूप में बालपन का अहसास हुआ |

वैसे ये बाल रचनाए वाले प्रष्ठ पर पोस्ट करे तो उचित है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 9:41am
आदरणीय रविकर जी , आपकी सराहना ने मन दो गुना कर दिया , उत्साह वर्धन के लिये बहुत आभार !!!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 9:37am
आदरणीया मनोशी जी , उत्साह वर्धन के लिये आभार !!
Comment by रविकर on September 5, 2013 at 9:37am

वाह आदरणीय-
बच्चा बना दिया-
गजब लय-सुर-ताल
गाया गुनगुनाया-
बधाई-


धक्का मारे मैं गिर जाऊँ |
गिर गिर करके तुझे सताऊँ -
तू तो भोला घर पहुंचाए-
मातु पिता की गाली खाए-


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 9:34am
आदरणीय सुरेन्द्र भाई जी , प्रथम नव गीत की सराहना के लिये आपका बहुत आभार , उत्साह वर्धन के लिये धन्यवाद !!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 9:31am
आदरणीय मोहन भाई जी , उत्साह वर्धन के लियी आपका हार्दिक आभार !!
Comment by Manoshi Chatterjee on September 5, 2013 at 7:03am

भोली रचना। "चल हम सब गन्दे हो जायें"...बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं। 

सादर,

Comment by Abhinav Arun on September 5, 2013 at 5:54am

अत्यंत जीवंत ..मर्मस्पर्शी ..चित्रण किया है आदरणीय श्री गिरिराज जी ...बहुत सुन्दर सशक्त गीत ..हार्दिक बधाई ..बचपने के कई दृश्य ..स्मरण हो आये ..यही लेखन की सार्थकता है ..साधुवाद !!

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 11:43pm

बहुत सुन्दर .. बचपन की याद दिला दी आप की रचना ने , हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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