सद्गुरु मणि अनमोल है, जीवन दे चमकाय
पारस तो कुंदन करे, गुरु पारस कर जाय //१//
गुरु बंधन से मुक्त कर, ब्रह्म मार्ग दिखलाय
छद्म समझिए रूप वह, जो बंधन जकड़ाय //२//
गुरु की कृपा अनंत है, गुरु का प्रेम अथाह
श्रद्धानत जो मन हुआ, तद्क्षण पाई राह //३//
भटका गुरु-गुरु खोजता, गुरु मिलया नहिं कोय
ज्ञान पिपासा जब जगी, प्रकट स्वतः गुरु होय //४//
गुरु का आदि न अंत है, गुरु नहिं केवल गात्र
एक अनश्वर सत्व है, पाए बस सद्पात्र //५//
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
दोहावली की सराहना के लिए आभार प्रिय रामशिरोमणि पाठक जी
बहुत ही उत्कृष्ट दोहे आदरणीया प्राची जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर
आदरणीय सौरभ जी
दोहावली के भावों पर और सन्निहित अर्थ की सकारात्मकता पर आपका अनुमोदन बहुत महत्वपूर्ण है, उत्साहवर्धक है, आपकी आभारी हूँ आदरणीय.
भाषिक रूप से आँचलिक शब्दों को बहुत सहजता से नहीं लिख पाती मैं, और दोहावली में सिर्फ कुछ जगह आंचलिकता आरोपित सी शायद इसी लिए लग रही हो.. अवश्य ही प्रयत्न करके इसे संतुलित करती हूँ...
सादर धन्यवाद
दोहावलि के भावों की उत्कृष्टता पर कहना ही क्या ! पहला दोहा ही ध्यान खींच लेता है. किन्तु भाषिक रूप से काश आपने छंदों को पूर्ण आंचलिक रहने दिया होता.
आपकी सकारात्मक समझ दोहों के माध्यम से पूरी तरह से निखर कर आयी है. हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया.
दोहावली पर प्रोत्साहित करते अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार प्रिय महिमा जी, आ० विजय जी, प्रिय अरुण जी, संदीप जी, वंदना जी, आदरणीया राजेश जी..
आदरणीया मीना जी
दोहावली पर उत्साहवर्धक सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार
पारस तो कुंदन करे, गुरु पारस कर जाय
वाह आदरणीया डॉ.साहिबा शानदार दोहे
वाह वाह आदरणीया डॉ प्राची जी ...............इस उत्कृष्ट दोहावली के लिए बधाई हो
गुरु दिवस पर सार्थक सुन्दर दोहे बहुत बहुत बधाई प्रिय प्राची जी |
वाह दीदी वाह अप्रितम अप्रितम सुन्दर दोहावली रची है आपने पढ़कर आनंद आ गया एक एक दोहा हृदयस्पर्शी बन पड़ा है हृदयतल से बधाई स्वीकारें दीदी.
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