For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122   1212     22 

धूप हमको निचोड़ देती है ,

ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।

 

पत्तियों को बड़ी शिकायत है,

ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।

 

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़ देती है ।

 

दर खुले ही थे, हमने ये देखा,

ये हवा फिर से भेड़ देती है ।

 

रहनुमाओं की बातें सुन के तो,   

शर्म ख़ुद हाथ जोड़ देती है ।


हाल जैसे ही क़ाबू आता है,

याद क्यों फ़िर से छेड़ देती है ?

 मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vandana on September 10, 2013 at 6:56am

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़ देती है ।

बहुत बढ़िया आदरणीय गिरिराज सर 

वैसे सर  छोटा मुँह और बड़ी बात होगी  पर मुझे लगता है कि काफिया ओड़ देती है तय हुआ है पहले शेर में लेकिन आगे दो शेरों में यह ऐड के रूप में हो गया यथा भेड़ में .....माफ़ी चाहती हूँ ज्यादा जानकारी नहीं है पर जो महसूस हुआ उसे इंगित करने का दुस्साहस कर रही हूँ कृपया इस लिंक पर व्यंजन काफिया देखिएगा - http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...

एक बार फिर आप जैसे वरिष्ठ एवं अनुभवी सदस्य से क्षमा याचना सहित 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 8:21pm

आदर्णीय शिज्जू भाई , गज़ल को आपकी सराहना मिली ,मेरे लिये बहुत खुशी की बात है !! आपका आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 9, 2013 at 7:45pm

बहुत बढ़िया आदरणीय गिरिराज सर दाद कुबूल फरमायें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 6:56pm

आदरणीय अभिनव अरुन भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 6:54pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन का हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 6:52pm

आदरणीय ललित भाई , पहले तो गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार  !!!! आप नाक घुसेड़ने जैसी बात कभी न सोचें , मै अभी गज़ल सीख रहा हूँ , आपकी हर सलाह सर आंखो पर !! आपने बहुत उम्दा शेर कहे , मै इसे भी सहेज कर रखूंगा !! मेरी रचना पर ऐसे किसी भी सलाह का मै हार्दिक स्वागत करूंगा !! सादर !!

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 9, 2013 at 5:58pm

प्रिय गिरिराज भाई ..सुन्दरऔर सशक्त शेर हुए हैं बहुत बधाई

पत्तियों  को यही शिकायत  है

शाख क्यों साथ छोड़ देती है

 

बात मुद्दे पे जब भी आती है

सरजनी राह मोड़ देती है

सरजनी= बात नहीं मानना

आपके दो खूबसूरत अशआर  में बेवजह

नाक घुसेड दी  है . पसंद आये तो बताएँगे. सादर  

Comment by Abhinav Arun on September 9, 2013 at 1:56pm

बड़े शानदार और सशक्त शेर हुए हैं बहुत बधाई इस पुरअसर ग़ज़ल के लिए श्री गिरिराज जी !! पूरी ग़ज़ल मुग्ध कर गयी ,शानदार !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 9, 2013 at 1:43pm

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़ देती है ।

रहनुमाओं की बातें सुन के तो,   

शर्म ख़ुद हाथ जोड़ देती है ।

प्रिय गिरिराज भाई ..सुन्दर भाव ..सच में ऐसे बड़े बदलाव देखने को बहुतायत मिलता है सटीक ..
आभार
भ्रमर ५

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। 2122 1122 1122 22/112 दिल…"
1 minute ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय Rachna Bhatia जी आपकी दाद और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय: ।यही क़वाफ़ी अगर हम…"
10 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी"
15 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी "
16 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी "
16 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Richa Yadav जी"
17 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"मतले में ये क़वाफ़ी ग़लत माने जाएँगे।"
18 minutes ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनीत कुमार मेहता जी नमस्कार। आदरणीय, आपसे पूर्णतः सहमत हूँ कि हुस्न ए मतला में ऐसा संभव है…"
41 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल — 2122 1122 1122 22/112 लग रहा था जो मवाली वही अफसर निकलामोम जैसा दिखा दिलबर बड़ा पत्थर…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय सुशील सरना जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति हेतु। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता )
"आदरणीय दिनेश जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service