!!! पाठशाला बेमुरव्वत !!!
लोग मन को जांचते हैं,
भांप कर फिर काटते हैं।।
जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं।
धूप में बरसात में भी,
छांव-छतरी झांकते हैं।
दोस्तों से दुश्मनी जब,
रास्ते ही डांटते हैं।
छोड़ते हैं दर्द विषधर
बालिका को साधते हैं।
आज गरिमा मर चुकी जब,
गीत - कविता भांपते हैं।
जिंदगी में शोर बढ़ता
रिश्ते सारे सालते हैं।
पाठशाला बेमुरव्वत,
प्राण अस्मत चाहते हैं।
मैं सुनाऊं आप सुन लें
मौन दीपक कांपते हैं।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय केवल भाई , छोटी बह्र मे बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही !! सभी शे र क़ाबिले तारीफ है! ! बधाई !!
वाह बहुत सुंदर... गजब की प्रस्तुति .. बधाई आपको आदरणीय केवल जी
वाह आदरणीय केवल भाई जी चमक धीरे -२ बढ़ रही है //हार्दिक बधाई आपको
वाह वाह केवल भाई जी वाह छोटी बहर की ग़ज़ल में क्या खूब रंग जमाया है कुछ शेर तो सीधे दिल में उतर गए वीनस भाई जी की बातों पर गौर फरमाएं. इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकारें.
आ0 अखिलेश भाई जी, आपके स्नेह व गजल पसंद करने के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
पाठशाला बेमुरव्वत,
प्राण अस्मत चाहते .... क्या बात है भाई जी ... गहराई उतार दी आपने .... बधाई स्वीकार करें ....
आ0 अन्नपूर्णा जी, आपके स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 वीनस भाई जी, जी भाई, इता दोष को समझकर अवश्य दूर करूंगा। आपके स्नेह, उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं। ........... बहुत बढ़िया पंक्तियाँ बधाई आपको आ0 केवल भाई जी ।
जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं।
मैं सुनाऊं आप सुन लें
मौन दीपक कांपते हैं।
वाह आदरणीय इस दो शेर ने तो कुछ पलों के लिए लाजवाब ही कर दिया ...
हार्दिक बधाई
इता दोष हालाकि आगे की बात है मगर मंच पर इस बिंदु पर काफी बात हो चुकी है इसलिए इससे बच जाए तो मतला दोष मुक्त हो जायेगा .....
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