For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बार फिर 

इकट्ठा हो रही वही ताकतें 

एक बार फिर 

सज रहे वैसे ही मंच 

एक बार फिर 

जुट रही भीड़

कुछ पा जाने की आस में

              भूखे-नंगों की 

एक बार फिर 

सुनाई दे रहीं,

वही ध्वंसात्मक  धुनें 

एक बार फिर 

गूँज रही फ़ौजी जूतों की थाप  

 

एक बार फिर 

थिरक रहे दंगाइयों, आतंकियों के पाँव 

एक बार फिर 

उठ रही लपटें

धुए से काला हो गया आकाश 

एक बार  फिर

गुम हुए जा रहे

शब्दकोष से अच्छे प्यारे शब्द 

एक बार फिर 

कवि निराश है, उदास है, हताश है...

(मौलिक अप्रकाशित) 

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2013 at 9:33am

बहुत ही सार्थक सन्देश देती रचना के लिए बधाई  श्री अब्वर भाई 

एक बार फिर 

आ गए आम चुनाव 

पांच साल के अंतराल से 

नेता आयेंगे घर घर 

घूमेंगे गली गली 

एक बार फिर 

बाटेंगे नोट  बंटेगी शराब 

ढाणी ढाणी गाँव गाँव 

Comment by बृजेश नीरज on September 12, 2013 at 11:24pm

वाह! बहुत खूब!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2013 at 5:40pm

आदरणीय आपकी संवेदना पर क्या कहूँ !  ग़ज़ब !!

आपकी रचनाओं का कनवास ज़मीन पर फैला होता है और हम रचना को उस कैनवास पर मानों चल कर महसूसते हैं.

साहित्य का जो वास्तविक धर्म होता है उसे निभा ले जाने वाला रचनाकार आम आदमी के हृदय को छूता है.

वैसे इस बार थोड़ा और संयत होना था. शब्द विन्यास पर बात कर रहा हूँ.

भाव और संवेदना से पगी हुई आपकी इस उत्कृष्ट रचना को थोड़ा और कस रहा हूँ. विश्वास है आपका अनुमोदन मिलेगा -

एक बार फिर 

इकट्ठा हो रही हैं वही ताकतें 

एक बार फिर 

सज रहे हैं मंच 

एक बार फिर

जुट रही है भीड भूखे-नंगों की 

एक बार फिर 

सुनाई दे रहीं हैं ध्वंसात्मक धुनें 

एक बार फिर 

गूँज रही हैं फ़ौजी जूतों की थाप  

 

एक बार फिर

धमक रहे हैं दंगाइयों, आतंकियों के पाँव 

एक बार फिर 

उठने लगी हैं लपटें

धुँए से काला हो गया है आकाश.. एकबार फिर.

एक बार फिर गुम हुए जा रहे हैं

मनसकोश से अच्छे-प्यारे शब्द 

एक बार फिर 

कवि निराश है, उदास है, हताश है...

सादर

Comment by विजय मिश्र on September 12, 2013 at 5:14pm
अनवर भाई ! आजकी इन अनापेक्षित दुखदायी परिस्थितियों का कितना सजीव और भाव बिह्वल वर्णन किया है आपने , सही में अंतस चेतना को बेधनेवाली गलीज स्थितियां बेशर्म की तरह हम गैरतमन्दों के आगे खड़ी है .इस गीत में आपके मन की वेदना स्पष्ट उभरी है और मनोदशा को उजागर करती है . शुक्रिया .
Comment by MAHIMA SHREE on September 11, 2013 at 9:27pm

मर्मस्पर्शी .. संवेदनशील मनुष्य की विवशता मुखर हुयी है ...

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 9:10pm

वाह बेहद गहन भाव पिरोये शानदार रचना आदरणीय बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 11, 2013 at 7:49pm

बाहरी बुरी ताकतों का, सामाजिक हालातों का  प्रभाव जिस तरह कवि के संवेदनशील हृदय पर होता है ..इसे संदरता से व्यक्त किया है 

सादर शुभकामनाएँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 7:11pm

आ0 अनवर भाई , हमेशा की तरह एक दमदार रचना !! बहुत बधाई !!

Comment by रविकर on September 11, 2013 at 11:12am

बहुत बढ़िया -
शुभकामनायें
आदरणीय-

नहा खून से हर हर गंगे |
बहा खून ले, दर दर दंगे |
भंग व्यवस्था लंगु प्रशासन
सड़कों पर दुर्दांत लफंगे ।

जब मारक आघात करें | बोलो किसकी बात करें ॥

जहाँ प्रवंचक प्रवचन करते ।
श्रोता मकु तरते ना तरते ।
लम्बी चौड़ी हांक हांक के
दारुण दुःख हरते ना हरते -

हरते सिया बलात धरें । बोलो किसकी बात करें ॥

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 10:33pm
आ0 अनवर सुहेल जी बढ़िया रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service