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कैसी हो तुम?
वैसी ही शांत, संयमित और अपने को सहेजते हुए  I

 

भाग्यशाली है वह,
जो तुम्हारे साथ है
और सुन सकता है
तुम्हारे मौन द्वारा पुकारे उसके नाम को I 

 

भाग्यशाली है वो हवा,
जो अभी बहुत हल्के से
किरणों के बावजूद तुम्हे छूकर गई है I

 

भाग्यशाली है वो जल,
जो छोड़े जाने से पूर्व
तुम्हारी अंजलि में कुछ देर रुककर
तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाता है I

 

भाग्यशाली हैं वो कभी कभी कहे गये शब्द
जो तुम्हारे अधरों से

अमृतपान करते हैं I

 

काश !
उस हवा, जल और शब्दों में
कहीं मेरा भी कुछ अंश होता...

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Comment by Veerendra Jain on December 31, 2010 at 7:15pm
Hardik aabhar... Aacharya ji...
Comment by Veerendra Jain on December 31, 2010 at 7:14pm
thanks... Ashish ji...
Comment by Veerendra Jain on December 31, 2010 at 7:13pm
Dhanyawad ...Neelam ji...
Comment by sanjiv verma 'salil' on December 31, 2010 at 6:30pm
कोमल भावनाओं की कोमल अभिव्यक्ति... मन को छू गयी.
Comment by आशीष यादव on December 31, 2010 at 10:00am
very nice sir,
Comment by Neelam Upadhyaya on December 31, 2010 at 9:38am
Bahut hi sunder abhivyakti hai. Sadhuwaad.
Comment by Veerendra Jain on December 30, 2010 at 4:54pm
bahut dhanyawad ...Lata ji
Comment by Veerendra Jain on December 30, 2010 at 4:53pm
Bhaskar ji...bahut bahut aabhar...
Comment by Lata R.Ojha on December 30, 2010 at 3:31pm
कितनी सरलता से ..मन की अनूठी चाह को पने अभिव्यक्त किया है ..अति सुंदर .. :) 
Comment by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 2:39pm
सुन्दर.!!

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