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अब तो बाहर आ ही जायें ख़्वाब से बेदार में
क़त्ल ,गारत, ख़ूँ भरा है आज के अख़बार में
कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा
देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में
कोई पूछे , सच बताये, धुन्ध क्यों फैला है ये
उनको छोड़ें जो गवैये हैं किसी दरबार में
पेट की खातिर किसी का तन बिका करता है अब
और कोई घर की बेटी नाचती है बार में
थक के पीछे रह गया हूँ , हाँफता मैं क्या करूँ
ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में
आप कीलें ध्यान से बाहर ज़रा सा ठोकना
प्लासटर तड़का दिखा है भीतरी दीवार में
मन की कड़वाहट मेरे शब्दों को सारे खा रही
बात सच्ची कह रहा हूँ पर कमी है धार में
.
संषोधित पोस्ट ( गलती सुधार के बाद )
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
वाह वाह आदरणीय बहुत ही धारदार ग़ज़ल कही है आपने कुछ अशआर तो दिल को छू गए वाह आदरणीय वाह दिली दाद कुबूल फरमाएं.
अब तो बाहर आ ही जायें ख़्वाब से बेदार में
क़त्ल ,गारत, ख़ूँ भरा है आज के अख़बार में
कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा
देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में.... वाह बहुत खूब बेहद समसामयिक प्रस्तुति बधाई आ. गिरिराज जी
आदरणीय अभिनव भाई , आप टिप्पणी हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करती है !! आपका बहुत शुक्रिया ! ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !!
आदरणीय सलीम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका !! आभार !! आपने सही कहा --धुन्ध क्यों फैली है ये , होना चाहिये था !!
टंकण की गलती हो गई है , तद अनुसार सुधार कर लूंगा !!
आदरणीय रविकर भाई , सराहना के लिये आपका अभार !! स्नेह ऐसे ही बनाये रखें !!
आदरणीय शिज्जू भाई , गज़ल की सराहना के लिये और सलाह के लिये आपका बहुत शुक्रिया !! ऐब-ए-तनाफुर से मै संतुष्ट नही हो पा रहा हूँ , जैसा कि आपने आदरणीय वीनस भाई से प्रश्न किया था , आदरनीत बशीर बद्र साहब के शेर का उदाहरण दे कर , उसमे ----------
धूप पर्वत,शाम झरना,दोनों अपने साथ है/ वर्तमान शेर मे वैसी स्थिति नही दिख रही है !! मिर्ज़ा ग़ालिब का एक प्रसिद्ध शेर है ---
हैफ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत ग़ालिब , जिसकी क़िस्मत मे हो आशिक का गिरेबां होना !! मे लगाताए तीन बार क आया है!
फिर भी आप मेरे से जादा जानकार हैं तो मै शंकित जरूर हूँ !!
धार में बिलकुल कमी नहीं बहुत शानदार सामयिक और धारदार ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीय !!
बढ़िया गजल आदरणीय गिरिराज जी-
शुभकामनायें-
//कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा
देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में
कोई पूछे , सच बताये, धुन्ध क्यों फैला है ये
उनको छोड़ें जो गवैये हैं किसी दरबार में//
वाह आदरणीय गिरिराज सर आपकी ग़ज़लगोई पूरे रंग में है
कुछ जगह मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा
//आप कीलें ध्यान से बाहर ज़रा सा ठोकना
पलसतर तड़का दिखा है भीतरी दीवार में// यहाँ पुनः तक्तीअ करके देख लें
//थक के पीछे रह गया हूँ , हाँफता मैं क्या करूँ// यहाँ ऐब-ए-तनाफुर है
//मन की कड़वाहट मेरे शब्दों को सारे खा रही
बात सच्ची कह रहा हूँ पर कमी है धार में // बहुत खूब सर दाद कुबूल करें
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