सुनो
क्या कहती हैं
माताएं , बहने , सखी सहेलियाँ
वक्त बदल चुका है
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और इरादे मजबूत
सोच लो ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
बहुत सार्थक भाव..
वाह क्या चेतावनी है वाह ,इसे खतरनाक कहूँ या सुंदर? क्योंकि चेतावनी तो खतरनाक है मगर रचना खूबसूरतl बहरहाल बधाई स्वीकार करें
:-) आराम से आ, महिमा जी ज़रा हौले हौले ...वैसे आपकी रचना के आत्मविश्वास और विजन सराहनीय हैं आज समय स्पष्ट और सशक्त कहने का है संकेतों का युग छायावाद हो गया ...प्रगति के काल में सब पारदर्शी हो सत्यम शिवम सुन्दरम हो !! यथा शुभ शुभ ..मंगल मंगल !! बहुत शुभकामनायें आपकी साहित्यिक मेधा दिनानुदिन प्रगति करे ...इस मंच से भी संकलन परों को खोलते हुए के लिए कवयित्री महिमा जी को बधाई :-)
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब
तुम होगे
सलाम आपकी वैचारिकता को प्रिय महिमा जी!
शुभकामनायें !!!
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