नेता स्वार्थ के अपने, बदल रहे संविधान ।
करने दो जो चाहते, डालो न व्यवधान ।।
डालो न व्यवधान, है अभी उनकी बारी ।
लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला बाट जोहे, बैठे नदी तट रेता ।
शिकारी बन बैठो, शिकार हो ऐसे नेता ।।
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मौलिक अप्रकाशित
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डालो न व्यवधान, है अभी उनकी बारी ।
लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला बाट जोहे, बैठे नदी तट रेता ।
शिकारी बन बैठो, शिकार हो ऐसे नेता ।।
प्रिय रमेश जी अच्छे भाव ..व्यंग्य का पुट लिए सुन्दर कुंडली ..अनन्त जी व् अन्य मित्रों के सुझाव पर गौर करियेगा
आभार
भ्रमर ५
हम तो ऐसे लिख डालते
डालो न व्यवधान, अभी है उनकी बारी ।
लक्ष्य पर रख के ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला जोहे बाट , बैठ सरिता तट रेता ।
बैठ शिकारी बन , शिकार हो ऐसे नेता ।
सामयिक मसले पर छंद का सुन्दर प्रयास | मित्रों के सुझाव आपने संज्ञान में लिए है | करत करत अब्यास के ---------
बधाई एवं शुभकामनाए
सुंदर लिखा है आपने, चलते रहें, सादर
रमेश कुमार जी कुंडलिया पर प्रयास करते देख बहुत अच्छा लगा त्रुटियाँ नीचे मित्रों ने बता ही दी छंद समूह में भी विधान सीख सकते हैं हम सब भी यहाँ एक दूसरे से सीख कर ही आगे बढ़ रहे हैं शुभकामनायें
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवजी, गिरिराजजी, आदरणीय रविकरजी, आ संदीप कुमारजी, आ अरून शर्माजी आप सभी का हार्दिक आभार ।
आ रविकरजी, आ अरून शर्माजी, आपलोगों के मार्गदर्शन के बल पर मैं कुछ सीख पा रहा हू । जैसे बच्चा "अ" लिखना सीख कर उत्सुकता से अपने माता पिता को दिखाने ललायित रहता है कुछ उसी प्रकार मेरी स्थिति हो गई है । आप इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहिगा मुझ मे आपको सुधार निश्चित रूप से दिखेगा ।
भाई जी नेताओं पर कुण्डलिया छंद के जरिये अच्छा व्यंग कसा है किन्तु आनंद आते आते रह गया. भाई जी श्रम के साथ साथ तनिक ध्यान भी देना शुरू करें प्रवाह और मात्रा गणना पर, भाई जी लिखते समय गुनगुना कर लिखें काफी सरलता होगी. इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.
नेता स्वार्थ के अपने, बदल रहे संविधान । (दोहे के द्वतीय चरण में 12 मात्राएँ)
करने दो जो चाहते, डालो न व्यवधान ।। ( दोहे के चतुर्थ चरण में 10 मात्राएँ)
डालो न व्यवधान, है अभी उनकी बारी । (
लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला बाट जोहे, बैठे नदी तट रेता ।
शिकारी बन बैठो, शिकार हो ऐसे नेता ।। ( रोला के अंतिम चरण में 14 मात्राएँ)
आदरणीय भाव बढ़िया लगे उसके लिए बधाई
बाकी आदरणीय रविकर सर का सुझाव जोरदार है
उन्हें भी बहुत बहुत बधाई
आदरणीय रमेश भाई , बहुत अच्छी बात लिखी , कुंडली छन्द मे ! बधाई !!
संविधान और कुटुम्ब के कारण कुछ दिक्कत आ रही है-
सुधारने की कोशिश कर लीजिये-सादर-
बढ़िया भाव-
शुभकामनायें आदरणीय-
दागी का रास्ता रुकना ही चाहिए-
कुछ ऐसे करके देख लीजिये एक बार-
नेता अपने स्वार्थ में, बदल रहे संविधान ।
करने दो जो चाहते, डालो मत व्यवधान ।
डालो मत व्यवधान, आज है उनकी बारी ।
रखो लक्ष्य पर ध्यान, करो वोटर तैयारी ।।
रास्ता जोह रमेश, ठोकना कुटुंब समेता ।
निश्चय होय शिकार, धूर्त अपराधी नेता ।।
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