देते है आशीष वे, सर पर रखते हाथ
मन में श्रद्धा भाव हो, तभी श्राद्ध यथार्थ |
तभी श्राद्ध यथार्थ, सभी है उनकी माया
समझों वे है साथ, मिले उनकी ही छाया
मिले सभी संस्कार संज्ञान में जो लेते
माने हम उपकार, पूर्वज ख़ुशी ही देते |
(2)
देवर हो लक्ष्मण तभी, सीता दे वर माथ
माँ का हो आशीष तो मिले जगत का साथ |
मिले जगत का साथ, साथ में प्रभु की छाया
भ्राता से हो प्यार, सुखो का घर में साया
घर का हो कल्याण दिखता न कोई तेवर
पाकर सुन्दर सीख बने जो काबिल देवर |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
कुंडलिया छंद पसंद कर सराहने के लिए आपका आभार श्री राम भाई
कुंडलिया छंद के भाव पसंद करने के लिए हार्दिक अभार डॉ प्राची जी | सादर
तभी श्राद्ध यथार्थ की जगह -तब हो श्राद्ध यथार्थ किया जा सकता है ?
बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया छंद आदरणीय //हार्दिक बधाई आपको //सादर
सुन्दर भाव आ० लक्ष्मण जी
तभी श्राद्ध यथार्थ |.................मात्रा पुनः जांचें
प्रवाह पर भी ध्यान दें
सादर
हार्दिक आभार आपका श्री राजेश जी | सादर
जय हो आदरणीय, बहुत बढि़या प्रस्तुति, सादर
छंद पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी, एवं श्री रमेश कुमार चौहान जी | सादर
इस सुंदर भाव एवं सुंदर छंद के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय ।
इस सुन्दर कुंडलिया छंद के लिए बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सादर,
विजय निकोर
आपका हार्दिक आभार श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी | त्रुटी की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद
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