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उलटी इनकी चाल - आज की राजनीतिक घटना के सन्दर्भ में

चाल चला जब हंस की, बगुला बहुत सयान

बगुला खाया मात तब, खोया अपना मान

खोया अपना मान, इस्तीफे की है मांग

बात बड़ेन की मान, है टूटी छोटी  टांग

कह सागर कविराय, नेता इनका है बाल

इन्हीं को अब पड़ी, है उलटी इनकी चाल

आशीष ( सागर सुमन ) 

मौलिम एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 2, 2013 at 11:13pm

प्रस्तुत कुण्डलिया छंद विधान की दृष्टि से दोषपूर्ण है. मेरा इशारा रोला वाले भाग की ओर है.  इस पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया. जबकि आदरणीय रविकर जी ने इशारा किया भी तो अत्यंत गूह्य रूप में.  दोहे वाले भाग में भी बगुला  शब्द का दो बार आना छंद के कुल प्रभाव को कम करता हुआ दीख पड़ता है.

दूसरे, साहित्यिक मंचों पर शुद्ध राजनैतिक घटनाओं का सीधा वर्णन उचित नहीं माना जाता. व्यवस्था पर बातें करना एक ब ह जबकि राजनैतिक पार्टियों पर सीधी बातें रचनाकार के स्वर को हल्का कर देती हैं. बातें इशारों में हों यही उउचित है. इसके प्रति जागरुकता और संवेदनशीलता अपरिहार्य है.

पुराने सदस्य इस बात को जानते हैं, लेकिन इस तथ्य को बार-बार कहने की आवश्यकता इसी कारण पड़ती है कि नये सदस्य कई तथ्यों को सतत संलग्नता के बाद ही जान पाते हैं.

शुभेच्छाएँ.

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 12:05pm
बहुत ही सुंदर कथ्य , रही-सही रविकरजी ने पूरी कर दियी . दोनों जनों को साधुवाद .
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:55am

वाह वाह आदरणीय ग़ज़ब की रचना इस रचना पर आपको बहुत बहुत बधाई

आदरणीय रविकर सर और आदरनी आशीष जी को भी प्रातक्रिया छंद रचने के लिए हार्दिक हार्दिक बधाई जोरदार

मजा आ गया

Comment by रविकर on September 30, 2013 at 11:19am

वाह वाह वाह आशीष जी-
मजेदार रोले से आपने पूरी की कुण्डलिया
बधाई आदरणीय-

धत मौनी युवराज, बड़े गुस्से में लालू |
मारक मिर्ची तेज, चाट ले किन्तु कचालू |

सुबह मचाये शोर, नहीं महतारी जागी |
शीघ्र बुला के प्रेस, गोलियां भर भर दागी ||

Comment by Ashish Srivastava on September 30, 2013 at 9:57am
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 29, 2013 at 2:37pm

शुभ कामनाये उत्कृष्ट लेखन !

Comment by Ashish Srivastava on September 28, 2013 at 11:45pm

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव : जी बहुत बहुत आभार 

Comment by Ashish Srivastava on September 28, 2013 at 11:45pm

रविकर: आदरनीय, रविकर जी आपके छंद कमेन्ट के आभार स्वरुप इन्हीं दो लाइनों को आपका आदेश मानकर आपको समर्पित कर रहा हूँ 

दागी अध्यादेश पर, तीन दिनों में खाज |
श्रेष्ठ मुखर-जी-वन सदा, धत मौनी युवराज |

धत मौनी युवराज, कहाँ पे मुँह को खोले
माकन को फटकार, प्रेस में कर्कश बोले  
मर्यादा को छोड़ , खुद भी हो गये बागी 
नौटंकी क्यूँ ये जब , अध्यादेश ही दागी 

अंतिम चार लाइन द्वारा आशीष ( सागर सुमन ) 

Comment by रविकर on September 28, 2013 at 7:55pm

बढ़िया कटाक्ष -
आदरणीय शुभकामनायें-

दागी अध्यादेश पर, तीन दिनों में खाज |
श्रेष्ठ मुखर-जी-वन सदा, धत मौनी युवराज |

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 28, 2013 at 7:18pm

सामयिक विषय पर तीखा व्यंग्य , बधाई  आशीष भाई ।

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