2122 2122 2122 212
कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं
हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं
हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब
ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता नहीं
मेरी क़िस्मत खोज कर के थक गयी मुझको वहाँ
जिन ठिकानो पर कभी मै भूल कर रहता नहीं
मुश्किलें खुद राह देंगीं रास्ते पर आ उतर
ताल सड़ जाता है सुन ले, जो कभी बहता नहीं
हाथ काटे जा चुके हैं फिर तू आंखें लाल कर
आग सीने में अगर हो, चुप कभी सहता नहीं
मुश्किलों से इस क़दर तू आज रंजीदा न हो
कौन ऐसा सूर्य है , राहू जिसे गहता नही
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज जी ,
बहुत सुन्दर ग़ज़ल //हार्दिक बधाई आपको //सादर
मुश्किलों से इस क़दर तू आज रंजीदा न हो
कौन ऐसा सूर्य है , राहू जिसे गहता नही.....बहुत सुन्दर ..वाह !
हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल पर आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
खूबसूरत है गजल, शब्दों ने पाया अर्थ है-
भाव हैं सुन्दर अनोखे, आपका आभार है-
आदरणीय गिरिराज सर एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल सभी अशआर शानदार हुए हैं दिली दाद कुबूल फरमाएं.
बेहतरीन अशआरों से सजी इस ग़ज़ल पर ढेरों दाद हाजिर हैं आदरणीय गिरिराज जी
सादर
बहुत प्रभावशाली गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज जी
वाह बहुत उम्दा लिखा है .. सारे अश आर सुन्दर है .. बहुत बधाई आदरणीय
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