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जीवन में पहली बार कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास किया है. आप सबका मार्गदर्शन प्रार्थनीय है.

अम्बे तेरी वंदना, करता हूँ दिन-रात

मिल जाए मुझको जगह, चरणों में हे मात

चरणों में हे मात, सदा तेरे गुण गाऊँ

चरण-कमल-रज मात, नित्य ही शीश लगाऊँ

अर्पित हैं मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे

शब्दों को दो अर्थ, मात मेरी हे अम्बे

.

- बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 5:51pm

आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 5:49pm

आदरणीय विजय जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2013 at 5:17pm

प्रयास सभी कर रहे हैं ..कोई प्रथम कोई दूसरा ..........कोई ...प्रयास ही अत्यंत महत्व की चीज है ..आपके प्रयास को सादर नमन 

Comment by विजय मिश्र on October 3, 2013 at 4:49pm
प्रयास है तो सफल भी होंगे ही . मुझे भाव भाये . बधाई बृजेशजी
Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 4:41pm

आदरणीय राजेश जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 4:41pm

आदरणीय अरुण निगम जी आपका हार्दिक आभार! 

आपके निर्देशानुसार सुधार का प्रयास करता हूँ.

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 4:39pm

आदरणीय लक्ष्मण जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by राजेश 'मृदु' on October 3, 2013 at 2:40pm

जय हो आदरणीय, यह प्रयास तो सफल हुआ, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 3, 2013 at 9:19am

आदरणीय बृजेश जी, कुण्डलिया छंद पर पहला सफल प्रयास - हार्दिक बधाइयाँ. आदरणीय बागी जी एवम् आदरणीय रविकर जी के इंगित पर मनन करें. आभार........

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 3, 2013 at 9:05am

सुन्दर कुंडलियाँ छंद है | सफ़ल प्रयास के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री ब्रजेश नीरज जी 

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