जीवन में पहली बार कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास किया है. आप सबका मार्गदर्शन प्रार्थनीय है.
अम्बे तेरी वंदना, करता हूँ दिन-रात
मिल जाए मुझको जगह, चरणों में हे मात
चरणों में हे मात, सदा तेरे गुण गाऊँ
चरण-कमल-रज मात, नित्य ही शीश लगाऊँ
अर्पित हैं मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे
शब्दों को दो अर्थ, मात मेरी हे अम्बे
.
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!
प्रिय नीरज भाई बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ ...अच्छा प्रयास ..जय माँ अम्बे
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!
आ0 बृजेश भार्इ जी, अति सुन्दर कुण्डलियां। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। सादर,
आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार!
सुंदर छंद आदरणीय बृजेश जी.... नवरात्रि उत्सव प्रारंभ होने से ठीक पहले माँ अम्बे की इस वंदना पर बधाई स्वीकारें....
आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय नीरज भाई , सुन्दर कुन्डलिया की रचना के लिये आपको बधाई !!
आदरणीय रविकर जी, आपका हार्दिक आभार!
वास्तव में चौथी पंक्ति की इस कमी की ओर मेरा ध्यान ही नहीं गया. इसे सही करने का प्रयास करता हूँ.
सादर!
बधाई आदरणीय बृजेश जी-
बहुत बढ़िया प्रयास-
चौथी पंक्ति में कुछ नए भाव शामिल किये जा सकते हैं-
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