रूपसी
सुंदर, सकल काया, से सभी के ह्रदय में,
अनुकूल जोश भर, जाती है वो रूपसी,
नयन उचारें जब, मधु से भी मीठे बोल,
तब मदहोश कर, जाती है वो रूपसी,
मन है पवित्र ऐसे, गंगा का हो जल जैसे,
जितने भी दोष, तर, जाती है वो रूपसी,
लता सी कमरिया को, जब लचकाती चले,
सबको बेहोश कर, जाती है वो रूपसी।
-------------------------------- सुशील जोशी
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय शिज्जू भाई साहब.....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय सुशीलजी बधाई स्वीकार करें
बहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय संजय जी....
क्या ही सुंदर प्रवाहमायी धनाक्षरी रची आपने आदरणीय सुशील भाई जी....
इस निमित्त सादर बधाई स्वीकारें
आप सभी आदरणीयों का ह्रदय से आभार.... जिस प्रकार से आप मेरा उत्साह बढ़ा रहे हैं वह देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा है.... एवं और भी अधिक एवं कुछ अच्छा लिखने का मन होता है..... आप सभी अग्रजों को सादर प्रणाम एवं अनुजों को बहुत बहुत स्नेह एवं आशीर्वाद...
सुंदर रचना बहुत बधाई आपको ।
शृंगार रस पगा सुन्दर कवित्त
शुभकामनाएं आ० सुशील जी
ओह्होह.. . :-))))
बढ़िया :)
सुन्दर वर्णन करती रचना के हेतु बधाई आदरणीय
.
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