1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
हुए रुखसत दिले -नादां की ही कुछ सिसकियाँ भी थी
खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं
लहर तडपी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल
ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ भी थीं
बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से
दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं
कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को
चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं
भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे वक़्त को हमदम
नहीं भूले हैं जो अब तक, वही बेचैनियाँ भी थीं
अभी तक याद है वो कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी औ दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थीं
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित ji
Comment
सुन्दर ग़ज़ल हुई है प्रिय संजू सिंह जी
अभी तक याद है वो कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी औ दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थीं...सुन्दर
हार्दिक बधाई
अभी तक याद है वो कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी औ दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थीं..............बहुत सुंदर
बहुत ही खुबसूरत गज़ल आदरणीया संजू जी बधाई आपको
लौट कर ग़ज़ल के संशोधित रूप को पढ़ना रुचिकर लगा
गुणीजन द्वारा अमूमन सभी दोष इंगित किये गए और अपने ग़ज़ल को बेहतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ...
अक्सर ऐसा होता है कि शुरुआत में ही ग़ज़ल पर विस्तार से टिप्पणी आगे की टिप्पणियों को प्रभावित कर जाती है इसलिए सोचा कुछ रुक के कहा जाए ...
मचला भी था साहिल
को
मचला था साहिल भी ... किया जा सकता है ... वैसे ग़ज़ल में कहन के हवाले से अभी बहुत गुंजाईश है :)))))))))
वाह! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने. आपको हार्दिक बधाई!
खूबसूरत गज़ल है आदरणीया संजू जी.....
प्रथम दृष्टया ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें ...
आगे विस्तार से कुछ कहने के लिए लौट कर आऊँगा ////aadarneeya veenas ji mujhe intzar hai ki aap aayen aur vistar se kuchh kahen ...jisse mai ghazal ko sudhar sakun....abhi mai aapki badhai sweekar karte hue aap ka shukriya ada karti hu...
aadarneeya sudhijanon ko mera hridaytal se aabhar ..aap sabhi ne meri rachna ka anumodan kiya mai atyadhik aabhari hu.aap sabhi ke sujhawo se nishchay hi meri yah kachchi ghazal purdta ko prapt hogi ..aap sabhi ke sujhawon ka hriday se swagat karti hu....
मतला ही दोषपूर्ण हो गया.. क्यों ? आपको पता है..
कोशिश अच्छी है. मगर बहुत अच्छी होनी थी न .. :-))))
शुभेच्छाएँ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online