राजकुमार तोते को दबोच लाया और सबके सामने उसकी गर्दन मरोड़ दी... “तोते के साथ राक्षस भी मर गया” इस विश्वास के साथ प्रजा जय जयकार करती हुई सहर्ष अपने अपने कामों में लग गई।
उधर दरबार में ठहाकों का दौर तारीं था... हंसी के बीच एक कद्दावर, आत्मविश्वास भरी गंभीर आवाज़ गूंजी... “युवराज! लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि हमने अपनी ‘जान’ तोते में से निकाल कर अन्यत्र छुपा दी है... प्रजा की प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है कि आपकी युक्ति काम आ गई... राक्षस के मारे जाने के उत्साह और उत्सव के बीच प्रजा अब स्वयं अपने हाथों से ‘सत्तारानी’ के कक्ष कि चाबी आपको सौंप कर जाएगी...”
राजकुमार के होंठों के साथ ही पूरे दरबार में एक आशावादी मुस्कुराहट नृत्य करने लगी।
____________मौलिक/अप्रकाशित____________
Comment
सादर आभार आदरणीय गणेश भाई...
आदरणीय संजय जी, आज कल केवल मारने और फ़ाड़ने के काम हो रहे हैं. इस चाभी लेने देने के चक्कर में तोते की जान गयी.
सुन्दर कथा. बधाई.
सादर.
स्थापित बिम्बों का राजनैतिक परिपेक्ष्य में सुन्दर प्रयोग
सत्ता हासिल करने के लिए प्रजा को भ्रमित करने की कूटनीति को प्रस्तुत करती सुन्दर लघुकथा
हार्दिक बधाई आ० संजय मिश्रा जी
इस कुटनीति का कोई जवाब नहीं इसके बिना तो राजपाट चलता नहीं.
इंगितों का सुन्दर और प्रभावी प्रयोग हुआ है, भाई संजय हबीबजी. लेकिन, यह कथा अंत में बहुत बोलती हुई लगी जिसकी आवश्यकता लग नहीं रही थी. ऐसा मुझे लगा है.
इस सुन्दर प्रयास पर हार्दिक बधाइयाँ.
शुभेच्छाएँ
बहुत बढ़िया , गूढ अर्थ को अपने मे समेटे हुये इस सुंदर लघु कथा हेतु बधाई आपको ।
प्रजा इसी तरह तो हर बार ठगी जाती है! बहुत सुन्दर कथा! आपको हार्दिक बधाई !
सुंदर एवं सच्चाई को प्रदर्शित करती इस लघु कथा के लिए बधाई हो आपको आदरणीय संजय जी...
आदरणीय संजय भाई , बहुत सुन्दर लघु कथा !! यही हो रहा है आज कल , असल रावण कभी मारा ही नही जाता और जनता भ्रम मे जीती रहती है ! ! बहुत बधाई !!
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