चप्पल घिस-घिस कर आधे रह गए थे सूरज शर्मा के । पिछले 3 साल से अपनी मास्टर डिग्री की फ़ाइल प्लास्टिक के थैले में रखे नौकरी की तलाश में जगह-जगह धक्के और ठोकरें खाते घूम जो रहा था । मई महीने की दोपहरी थी । दैनिक पत्रिका के " वान्टेड " वाले पृष्ठ में कई जगह पेन से गोल घेरा लगाए सूरज पिछले चार घंटे से शहर के चक्कर लगाते भूख प्यास से बेहाल हो चुका था । शाम तक 2-3 इंटरव्यू और देना था उसे । बची-खुची हिम्मत जुटा , सिटी बस पकड़ने वो दौड़ पडा । सड़क पर पहुँचते-पहुँचते सहसा चकराकर गिर पड़ा और विपरीत दिशा से आता एक ट्रक उसके बाएं पैर को कुचलते निकल गया । देखते-देखते भीड़ लग गयी । बेहोश हो चुके सूरज को लोगों ने अस्पताल पहुंचाया । होश आने पर सूरज ने देखा उसका बायाँ पैर घुटने के ऊपर से काटा जा चुका है । मन पीड़ा और अपने अपाहिज हो जाने के अहसास से तड़प उठा उसका । सहसा उसे ध्यान आया " वांटेड " वाले पृष्ठ में शायद किसी बैंक का विज्ञापन था " केवल विकलांगों के लिए सीधी भर्ती "। उसका दिल अपने दोनों पैरों से बाल्लियों उछलने लगा पर उसके उदास चेहरे पर एक विद्रूप सी मुस्कराहट उभर आई ।
Comment
आदरणीय रविकर जी आपको मेरी कहानी अच्छी लगी । इसके लिए धन्यवाद ।
अखिलेश भैया प्रणाम, थोड़ी-थोड़ी कोशिश कर रहा हूँ लिखने की । इसके पहले एक ब्लॉग और पोस्ट हुआ है " जीवन -संघर्ष " पढ़कर देखिएगा ।
बेहद भावपूर्ण ! हार्दिक बधाई
एक मर्म स्पर्शी लघुकथा ,जो बेरोजगारी और सरकार की असफल नीतियों पर सीधा प्रहार करती है मर्म दिल को आहत कर गया ,बहुत बहुत बधाई इस लघु कथा के लिए आदरणीय कपीश चन्द्र जी|
ओह !! कथा का अंत भावुक कर गया ....
बधाई आप को
भीषण है बेरोजगारी की समस्या!!
बेरोजगार की मनोव्यथा बारीकी से उकेरी !!
आदरणीय बड़े भाई , बहुत सुन्दर लघुकथा लिखी है !! पढ़े लिखे बेरोज़गारों की सच मे ऐसी ही स्थोति है !! बहुत बधाई !!
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