!!! हर काम-दिशा रति पावन हो !!!
दुर्मिल सवैया छन्द आठ सगण यथा-112 आठ पुनरावृतित
// 1 //
हर मां जगती तल शीतल सी, नव जीवन दायक है जर* मां।..........*धन अर्थात लक्ष्मी
जर मां सब ध्यान धरे उर में, दर रोशन, बाहर है गर मां।।
गर मां नव दीप जले सुखदा, सुख बांट रहूं सुख को वर मां।
वर मां मुझको शिशु कृष्ण कहो, तम नष्ट करूं वर दे हर मां।।
// 2 //
समिधा सम दुर्गति नष्ट करें, सत पुष्ट करें अति पावन हो।
मन उज्वल हो कर दान सधे, तपनिष्ठ रहें मति पावन हो।।
अति दीन मलीन कुलीन बनें, सुविचार दया गति पावन हो।
नर-नारि सदा सम ज्ञान रहें, हर काम-दिशा रति पावन हो।।
के0पी0सत्यममौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत भावयुक्त रचना !! हार्दिक बधाई !!
सुन्दर छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं नवरात्रि की शुभकामनाए
आदरणीय केवल भाई , ऐसी अनुपम छन्द रचना की तारेफ के लिये मेरे पास शब्दों की शिल्प समझ की कमी हो रही है !! बस गूंगे की गुड़ है मेरे लिये !! मीठा लग रहा है बोल नही पा रहा हूँ !!!! हार्दिक बधाई भाई !!
बढ़िया जर माँ गर माँ वर माँ धरती पर शान्ति रहे मइया |
शुभ दुर्मिल छंद रचे कवि सुन्दर शिल्प कथा बढ़िया भइया ||
केवल प्रसाद जी, सुंदर सवैया छंद और नव रात्रि की बधाई ।
नवरात्र के पावन उत्सव पर इन सुंदर सवैयों के लिए हार्दिक बधाई हो आदरणीय केवल प्रसाद जी...
समिधा सम दुर्गति नष्ट करें, सत पुष्ट करें अति पावन हो।
मन उज्वल हो कर दान सधे, तपनिष्ठ रहें मति पावन हो।।
आदरणीय श्री केवल जी बहुत ही सकारात्मक और सुंदर कामना की है आपने इस रचना में ..हार्दिक साधुवाद और बधाई इस सशक्त सार्थक सृजन के लिए ! नवरात्रों की हार्दिक बधाई !!
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