2122 2122 2122 2122
बह्र----रमल मुसम्मन सालिम
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हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं
शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं
लूट कर अम्नो चमन को चल पड़े हो तुम जहाँ से
बद दुआओं की वहां किरचें बिखरती जा रही हैं
अब्र तुझको क्या मिलेगा यूँ समंदर पे बरस के
देख नदियाँ आज सहरा में सिमटती जा रही हैं
हाथ दिल पर रख लिया फिर सीलती उस झोंपड़ी ने
रश्मियाँ ऊँची हवेली में उतरती जा रही हैं
बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब
देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं
जो जमीं शादाव रहती थी यहाँ पर कहकहों से
नफ़रतों की ये रिदाएँ क्यों पसरती जा रही हैं
या ख़ुदा पर्दों के पीछे छुप गईं तहज़ीब अब तो
जुल्म गर्दों की यहाँ सूरत निखरती जा रही हैं
पर गुलामी कैद से जिसको शहीदों ने बचाया
उस कमल की 'राज' पंखुड़ियाँ उखड़ती जा रही हैं
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ख़ार =कांटे
शादाव=हरीभरी
किरचें =छोटे छोटे कण
रश्मियाँ =सूर्य की किरणें
रिदाएँ =चादरें
सहरा =रेगिस्तान
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
ज़िन्दगी शब्द को बहुवचन कैसे करना है यह ग़ज़ल विषय न हो कर भाषा के व्याकरण का विषय है. आद. राजेश कुमारीजी.
हम अवश्य जानें कि ज़िन्दगियाँ और बहुवचन में प्रयुक्त ज़िन्दग़ी में क्या अंतर है. आपके मतले में वाक्य के विन्यास से ज़िन्दग़ी का बहुवचन ज़िन्दग़ियाँ ही उपयुक्त होगा. अब ग़ज़ल का बह्र इस शब्द को न स्वीकार कर पाये तो मिसरे को ठीक करना उचित होगा.
आगे, आप ग़ज़लकार हैं, इस निवेदन को मानें या न मानें.
सादर
आदरणीया राजेश जी
हर शेर नें बाँध लिया... जिन एहसासों के सागर में उतर ये सुन्दर मोती चुने हैं आपने उसके लिए आपको ढेर ढेर सारी बधाई.
हाथ दिल पर रख लिया फिर सीलती उस झोंपड़ी ने
रश्मियाँ ऊँची हवेली में उतरती जा रही हैं .........................वाह इस शेर पर तो बहुत बहुत दाद क़ुबूल कीजिये
हादिसों से जिन्दगी ऐसे गुजरती जा रही हैं... इस मिसरे पर एक बार पुनः गौर कीजिये.
सादर शुभकामनाएं
बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब
देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं
जो जमीं शादाव रहती थी यहाँ पर कहकहों से
नफ़रतों की ये रिदाएँ क्यों पसरती जा रही हैं
आदरणीया राजेश कुमारी जी उम्दा गज़ल के लिए ढ़ेरों बधायी।
बहुत खूब...
वाह वा आदरणीया राजेश कुमारी जी वाह
इस लाजवाब पेशकश पर ढेरों दाद हाजिर हैं
जय हो
वाह वाह वाह आदरणीया क्या सुन्दर ग़ज़ल पेश की है वाह दिल खुश हो गया पढ़कर एक से बढ़कर एक अशआर दिल से ढेरों दाद कुबल फरमाएं.
बैद्य नाथ सारथी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से आभारी हूँ सादर
बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने ...ये मिसरे मेरी पसंद के
बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब
देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं...... नमन सहित :)
आदरणीय शिज्जू जी आप सही कह रहे हैं ज्यों को नहीं गिराया जा सकता अभी इस बात को पुख्ता किया इस की जगह जो करती हूँ हृदय से आभारी हूँ की मेरी जानकारी /ज्ञान में आपके कारण वृद्धि हुई इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहिये ,तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज जी ग़ज़ल आपकी समीक्षा से धन्य हुई मेरा लिखना सार्थक हुआ हृदय से आभारी हूँ
आदरणीय विजय निकोर जी ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभार आपका ,दरअसल जिन्दगी को बहु वचन में हैं करके इसी लिए दिखाया है की नीचे के सभी अशआरों में बहु वचन लिया है अतः हैं करना जरूरी है अब ये सोच रही हूँ की जो मतले में लिखा जिंदगी क्या बहु वचन में आएगी (जैसा की मेरा ख्याल है की जिन्दगी को यहाँ बहुवचन में ले सकते हैं )आदरणीय वीनस जी को इस्स्लाह का और इन्तजार कर रही हूँ यदि इसे बहु वचन में नहीं ले सकते तो मतले के उला में ही बदलाव करुँगी
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