For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हादिसों से जिन्दगी ऐसे गुजरती जा रही हैं (ग़ज़ल --राज )

2122     2122    2122   2122  

बह्र----रमल मुसम्मन सालिम 

.

हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं

शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं  

 

लूट कर अम्नो चमन को चल पड़े हो तुम जहाँ  से

बद दुआओं की वहां किरचें बिखरती जा रही हैं

 

अब्र तुझको क्या मिलेगा यूँ समंदर पे बरस के

देख नदियाँ आज सहरा में सिमटती जा रही हैं

 

हाथ दिल पर रख लिया फिर सीलती उस झोंपड़ी ने

रश्मियाँ ऊँची हवेली में उतरती जा रही हैं 

 

बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब

देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं

 

जो जमीं शादाव रहती थी यहाँ पर कहकहों से

नफ़रतों की ये रिदाएँ क्यों पसरती जा रही हैं

 

या ख़ुदा पर्दों के पीछे छुप गईं तहज़ीब अब तो

जुल्म गर्दों की यहाँ सूरत निखरती जा रही हैं

 

पर गुलामी कैद से जिसको शहीदों ने बचाया   

उस कमल की 'राज' पंखुड़ियाँ उखड़ती जा रही हैं

********************************** 

 

ख़ार =कांटे

शादाव=हरीभरी

किरचें =छोटे छोटे कण

रश्मियाँ =सूर्य की किरणें

रिदाएँ =चादरें

सहरा =रेगिस्तान  

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 1002

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 7, 2013 at 11:04am

ज़िन्दगी शब्द को बहुवचन कैसे करना है यह ग़ज़ल विषय न हो कर भाषा के व्याकरण का विषय है. आद. राजेश कुमारीजी.

हम अवश्य जानें कि ज़िन्दगियाँ और बहुवचन में प्रयुक्त ज़िन्दग़ी में क्या अंतर है. आपके मतले में वाक्य के विन्यास से ज़िन्दग़ी का बहुवचन ज़िन्दग़ियाँ ही उपयुक्त होगा. अब ग़ज़ल का बह्र इस शब्द को न स्वीकार कर पाये तो मिसरे को ठीक करना उचित होगा.

आगे, आप ग़ज़लकार हैं,  इस निवेदन को मानें या न मानें.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 10:10pm

आदरणीया राजेश जी 

हर शेर नें बाँध लिया... जिन एहसासों के सागर में उतर ये सुन्दर मोती चुने हैं आपने उसके लिए आपको ढेर ढेर सारी बधाई.

हाथ दिल पर रख लिया फिर सीलती उस झोंपड़ी ने

रश्मियाँ ऊँची हवेली में उतरती जा रही हैं .........................वाह इस शेर पर तो बहुत बहुत दाद क़ुबूल कीजिये 

हादिसों से जिन्दगी ऐसे  गुजरती जा रही हैं... इस मिसरे पर एक बार पुनः गौर कीजिये.

सादर शुभकामनाएं 

Comment by नादिर ख़ान on October 6, 2013 at 10:04pm

बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब

देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं  

 

जो जमीं शादाव रहती थी यहाँ पर कहकहों से

नफ़रतों की ये रिदाएँ क्यों पसरती जा रही हैं

आदरणीया  राजेश कुमारी जी उम्दा गज़ल के लिए ढ़ेरों बधायी।

बहुत खूब...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2013 at 8:35pm

वाह वा आदरणीया राजेश कुमारी जी वाह

इस लाजवाब पेशकश पर ढेरों दाद हाजिर हैं

जय हो

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 4:43pm

वाह वाह वाह आदरणीया क्या सुन्दर ग़ज़ल पेश की है वाह दिल खुश हो गया पढ़कर एक से बढ़कर एक अशआर दिल से ढेरों दाद कुबल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2013 at 2:40pm

बैद्य नाथ सारथी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से आभारी हूँ सादर 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 6, 2013 at 2:23pm

बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने ...ये मिसरे मेरी पसंद के 

बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब

देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं...... नमन सहित :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2013 at 12:42pm

आदरणीय शिज्जू जी आप सही कह रहे हैं ज्यों को नहीं गिराया जा सकता अभी इस बात को पुख्ता किया इस की जगह जो करती हूँ हृदय से आभारी हूँ की मेरी जानकारी /ज्ञान में आपके कारण वृद्धि हुई इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहिये ,तहे दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2013 at 12:38pm

आदरणीय गिरिराज जी ग़ज़ल आपकी समीक्षा से  धन्य हुई मेरा लिखना सार्थक हुआ हृदय से आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2013 at 12:37pm

आदरणीय विजय निकोर जी ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभार आपका ,दरअसल जिन्दगी को बहु वचन में हैं करके इसी लिए दिखाया है की नीचे के सभी अशआरों में बहु वचन लिया है अतः हैं करना जरूरी है अब ये सोच रही हूँ की जो मतले में लिखा जिंदगी क्या बहु वचन में आएगी (जैसा की मेरा ख्याल है की जिन्दगी को यहाँ बहुवचन में ले सकते हैं )आदरणीय वीनस जी को इस्स्लाह का और इन्तजार कर रही हूँ यदि इसे बहु वचन में नहीं ले सकते तो मतले के उला में ही बदलाव करुँगी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
32 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
40 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Nov 18
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Nov 18

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service