एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!
(२१२२ १२१२ २२/११२)
चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||
सिसकियों में कटी जो रात उसका
कागज़ों पर हिसाब रक्खा है ||
शामियाना तेरी मुहब्बत का
एक ऐसा भी ख़्वाब रक्खा है ||
लफ़्ज करते नहीं शिकायत क्या
खामुशी का नकाब रक्खा है ||
याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह
आदतों को ख़राब रक्खा है ||
ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने
और तुमने शबाब रक्खा है ||
सींचना चाहता हूँ रिश्तों को
खुद को प्यासा, जनाब रक्खा है ||
-- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय आशीष भाई एक बेहतरीन ग़ज़ल लाजवाब अशआर हुए हैं खास कर इन अशआरों हेतु विशेष तौर से बधाई स्वीकारें.
याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह
आदतों को ख़राब रक्खा है || वाह भाई वाह
सींचना चाहता हूँ रिश्तों को
खुद को प्यासा, जनाब रक्खा है || लाजवाब
जनाब ...मतले के लिए हार्दिक बधाइयाँ ...सचमुच दिल को छू गई ..
चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||.... शानदार आगाज़ ..आपने जल्दबाजी कर दी है शायद , उम्दा ग़ज़ल हो सकती है ! :)
तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय रविकर जी !
तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी !
शुक्रिया आदरणीया vandana जी !
शुक्रिया आदरणीय Abhinav Arun जी !!
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय hemant sharma जी, आदरणीय Sushil.Joshi जी !
अच्छी ग़ज़ल हुई है,
//याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह
आदतों को ख़राब रक्खा है ||//
इस शेर पर विशेष बधाई ।
बढ़िया-
आभार आदरणीय-
अच्छे शेर ..खूबसूरत ग़ज़ल हुई है ..हार्दिक बधाई श्री सलिल जी !!
बहुत शानदार गज़ल आदरणीय आशीष जी
क्या शानदार गज़ल कही है आदरणीय आशीष भाई....बधाई हो...
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