हाय री किस्मत्
देखो सारे कर रहे, दूजा इन्क्रीमैंट,
अपना पिछले वर्ष का, बाकी है पेमैंट।
बाकी है पेमैंट, करो मत जल्दी-जल्दी,
कई ‘अटल’ हैं हाय, चढ़ानी जिनको हल्दी।
कह ‘जोशी’ कविराय, सभी किस्मत के मारे,
खाते लंगर भात, आजकल देखो सारे।
------------------------------------ सुशील जोशी
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
waah .. bada sundar bana hai aapka kundali chhand
आदरणीय सुशील जोशी जी बहुत सुन्दर कुंडली बनाई है आपने । सरकारी कर्मचारियों की प्रायः यही हालत रहती है । क्या करें बिना हल्दी चढ़ाए रंग भी तो चोखा नहीं आ पाता। बहुत-बहुत बधाई आपको ।
बहुत सुन्दर छंद रचना के लिए बधाई भाई शुशील जोशी जी -
महंगाई का दौर है, खाते लंगर भात
धन्यवाद सबसे करे, लगे रहे दिन रात |
क्या बात है आदरणीय सुशीलजी ! बहुत बढ़िया कुण्डलिया रची है आपने, बधाई स्वीकार करें
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