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ज़िन्दगी जीने के कुछ, सामान भी तो हैं!
बुत शहर में बोलते, इंसान भी तो हैं!
भीड़ से माना कि घर, सिकुड़े बने पिंजड़े,
साथ में फैले हुए, उद्यान भी तो हैं!
और अधिक के लोभ में, नाता घरों से तोड़,
मूढ़ गाँवों ने किए, प्रस्थान भी तो हैं।
गाँव ही आकर अकारण हैं मचाते भीड़
यूँ शहर में बढ़ गए व्यवधान भी तो हैं!
क्यों नहीं हक माँगते, शासन से आगे बढ़?
जानकर ये बन रहे, नादान भी तो हैं!
हल चलाते हाथ कोमल हो नहीं सकते,
श्रम से होते रास्ते, आसान भी तो हैं!
माँ-पिता क्यों दोष देते, पुत्र को ही आज?
मन में उनके कुछ दबे, अरमान भी तो हैं।
दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?
ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं!
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
खूबसूरत ग़ज़ल............हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
हल चलाते हाथ कोमल हो नहीं सकते,
श्रम से होते रास्ते, आसान भी तो हैं!
माँ-पिता क्यों दोष देते, पुत्र को ही आज?
मन में उनके कुछ दबे, अरमान भी तो हैं।
दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?
ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं!
आदरणीया बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है ये तीन शेर विशेष पसंद आये
बधाई स्वीकारें
आदरणीया बेहतरीन अशारों से सजी शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..सादर
हल चलाते हाथ कोमल हो नहीं सकते,
श्रम से होते रास्ते, आसान भी तो हैं!
माँ-पिता क्यों दोष देते, पुत्र को ही आज?
मन में उनके कुछ दबे, अरमान भी तो हैं।
दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?
ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं! ............सुन्दर अश'आरो से सजी ग़ज़ल .आ.कल्पना जी हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीया रामानी जी, वाह..! बेहतरीन गजल हुर्इ है। आप तहेदिल से बधार्इ स्वीकारें। सादर,
जी आदरणीय कल्पना जी यही मैं भी सोचती हूँ जब हम देवनागरी में लिखते हैं और अधिक हिंदी शब्दों को लेते हैं तो हिंदी के अनुसार शहर लेना चाहिए मैंने भी कई बड़े ग़ज़ल कारों को लिखते देखा है किन्तु ये सिर्फ हमारी राय है विद्वद जन क्या कहते हैं नियम क्या कहते हैं वो देखना है ,हाँ यदि हम उर्दू के ज्यादा शब्दों को ले रहे हैं तो शह्र लिखना चाहिए
दोष देने से शहर को, क्या भला हासिल?
ये शहर जन के लिए, वरदान भी तो हैं! ....सकारात्मक गज़ल
बधाई आ0 कल्पना दीदी!
आदरणीय अरुण अनंत जी, सुशील जोशी जी, आदरणीया राजेशकुमारी जी, अन्नपूर्ण जी, वंदना जी, प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणियों के लिए आप सबका हार्दिक धन्यवाद। शहर की मात्राओं के बारे में यहीं पर पूर्व में चर्चा हो चुकी है। चूंकि मैं उर्दू शब्दों की जानकारी नहीं रखती, इसलिए किसी भी शब्द की मात्राओं को हिन्दी उच्चारण के अनुसार ही लेती हूँ। हिन्दी में तीन वर्णों के शब्दों में अंतिम शब्द का उच्चारण प्रायः आधे शब्द जैसा ही होता है। कमल, गज़ल, सरल आदि 1+2 के अनुसार ही उच्चरित होते हैं, अतः मेरे विचार से हमें हिन्दी में शब्दों का सहज रूप ही देखना चाहिये। दुष्यंत जैसे प्रसिद्ध गजलकार ने भी शहर को 1+2 में ही प्रयोग किया है। इसलिए इस तरह के शब्दों को उसी नज़र से देखना चाहिए। पहले भी मैं इसी तरह के प्रयोग कर चुकी हूँ। अधिक तो आप सब स्वयं समझदार हैं।
आदरणीया वाह बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हरेक अशआर हृदयस्पर्शी बन पड़ा है वर्तमान परिस्थिति को सुन्दरता से परिभाषित किया है, मैं भी आदरणीया राजेश माँ जी से सहमत हूँ शहर की मात्रा 12 नहीं अपितु २१ होती है. बहरहाल इस सुन्दर ग़ज़ल हेतु दिली दाद कुबूल फरमाएं.
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