!!! सारांश !!!
बह्र - 2 2 2
कर्म जले।
आंख मले।।
धर्म कहां?
पाप पले।
नर्म गजल,
कण्ठ फले।
राह तेरी ,
रोज छले।
हिम्मत को,
दाद भले।
गर्म हवा,
नीम तले।
जीवन क्या?
हाड़ गले।
आफत में,
बह्र खले।
प्रीत करों,
बन पगले।
विव्हल मन,
शब्द टले।
दृषिट मिली,
सांझ ढले।
गर मुफलिस,
बात टले।
कण्टक पथ,
सत्य फले।
दुष्ट यहां,
हाथ मले।
के0पी0सत्यम / मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया महिमा जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय विन्ध्येश्वरी भार्इ जी, आपके स्नेह और गजल पर नजर व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
अच्छा प्रयास है आदरणीय बधाई आपको
आदरणीया गीतिका जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीया अन्नपूर्णा जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय भण्डारी भार्इजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय विजय भार्इजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय सुशील भार्इजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
वाह! सुंदर गज़ल! बधाई!!
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